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________________ डिसेम्बर २०१० १६९ २००७। १-५ कर्मग्रन्थोना हिन्दी विवेचन तेमज जैनतर्कभाषा अने ज्ञानबिन्दुनासम्पादन वखते प्रस्तावनारूपे लखायेला लेखोनो तथा निर्ग्रन्थसम्प्रदाय नामना पुस्तकने गुजराती अनुवाद. भारतीय तत्त्वज्ञानना जिज्ञासुओए परिशीलनअभ्यास करवा जेवा ग्रन्थो. १४. उपदेशमाला, कर्ता : श्रीधर्मदासगणिः । टीका - हेयोपादेया, टीकाकार : श्रीसिद्धर्षिगणिः । सं. मुनिजम्बूविजयः; प्र. श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद; ई. २०१०, सं. २०६६ थोडा ज वखत अगाऊ साध्वी चन्दनबालाश्री द्वारा सम्पादित आ ग्रन्थनु, केटलीक विशिष्ट ताडपत्र-प्रतिओना आधारे आ, नवेसरथी थयेखें सम्पादन छे. सम्पादकश्रीनी विलक्षण शोधदृष्टिनो लाभ आ सम्पादनने अवश्य मळ्यो हशे तेम मानी शकाय. प्रस्तावनामां सिद्धर्षिगणिना गुरु कोण ते विषे सामान्य चर्चा थई छे. प्रायः आ. मुनिचन्द्रसूरिजीए अन्यत्र लखेल प्रस्तावना-लेखना उद्धरणरूप ते चर्चा जणाय छे. परन्तु ते जम्बूविजयजीने पण मान्य ज होय तेम लागे छे. आ चर्चामां "दुर्गस्वामिशिष्यसद्दर्षिचरणरेणोः सिद्धर्षेः" एवं हेयोपादेयानी प्रशस्ति गत वाक्य टांकीने तेनो अर्थ आ प्रमाणे कल्पवामां आव्यो छे : "एटले सिद्धर्षिना गुरु दुर्गस्वामि छे.सद्दर्षि-ए वखतना - वर्तमान आचार्य होय. जेमनी आज्ञामां सिद्धर्षि होय." ____ आ अर्थघटन विशेष ऊहापोह मागी ले छे. सामान्य रीते तो उपरोक्त वाक्यनो शब्दार्थ आवो थायः “दुर्गस्वामीना शिष्य सद्दर्षिना चरणरेणु (शिष्य) सिद्धर्षिनी", आवो शब्दार्थ प्रकट होवा छतां उक्त बन्ने मुनिवरोए उक्त क्लिष्ट कल्पना जेवो अर्थ केम तारव्यो हशे ? ए प्रश्न थाय. 'उपमितिभवप्रपञ्चा'नी प्रशस्तिना श्लोक ८मां 'दुर्गस्वामी'नो उल्लेख छे. श्लोक १०मां, तेमनाथी (तेमना पछी) 'सद्दर्षि' थयानो निर्देश छे. अने श्लोक १४मां तेमना शिष्य लेखे "तच्चरणरेणुकल्पेन सिद्धाभिधानेन" ए प्रमाणे 'तेमना-सद्दर्षिना चरणरेणुतुल्य सिद्ध' एवो उल्लेख स्पष्ट करवामां
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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