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________________ १५२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ ___ इसमें ११ प्रकाश योगशास्त्र की परम्परा के अनुसार ही लिखे गए हैं, किन्तु बारहवें प्रकाश में 'श्रुतसमुद्र और गुरु के मुख से जो कुछ मैंने जाना है, उसका वर्णन कर चुका हूँ । अब वह निर्मल अनुभवसिद्ध तत्त्व को प्रकाशित करता हूँ' । इस योगशास्त्र की तुलना पतञ्जलि योगशास्त्र से की जा सकती है । विषय तथा वर्णनक्रम में मौलिकता तथा भिन्नता होते हुए भी महर्षि पतञ्जलि के योगसूत्र तथा हेमचन्द्र के योगशास्त्र में बहुत सी बातों में समानता पायी जाती है । अनीश्वरवादी होते हुए भी यत्र-तत्र परमेश्वर विषयक कल्पना भी दिखाई देती है । वस्तुतः यह उनकी उदारता है । वे परमात्मा व्यक्ति के नहीं गुणों के पूजक हैं । पातञ्जल का योगमार्ग एक प्रकार से एकान्तिक हो गया है, उसके द्वार सबके लिए खुले नहीं है। उसमें सबको आत्मानुभूति देने का आश्वासन भी नहीं है। जबकि योगशास्त्र में सभी मनुष्य उनको बताये हुए मार्ग पर चलकर मुक्तावस्था का आनन्द अनुभव कर सकते हैं । विश्वशान्ति के लिए तथा दृष्टिराग के उच्छेदन के लिए आचार्य हेमचन्द्र का योगशास्त्र आज भी अत्यन्त उपादेय ग्रन्थ है । विन्टरनित्ज अपने भारतीय साहित्य के इतिहास में लिखते हैं - योगशास्त्र केवल ध्यानयोग नहीं है अपितु सामान्य धर्माचरण की शिक्षा है। वरदाचारी (हिष्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर) भी इसी प्रकार का मत प्रकट करते है। टीका ग्रन्थ - आचार्य हेमचन्द्र प्रणीत शब्दानुशासन, कोष आदि पर अनेक उद्भट लेखकों ने समय-समय पर लेखनी चलाई है, उनमें से कुछ के उल्लेखनीय नाम अकारानुक्रम से इस प्रकार हैं : सिद्धहेमशब्दानुशासन (संस्कृत व्याकरण) - अमरचन्द्र (बृहद्वृत्ति अवचूरि), कनकप्रभ (लघुन्यास दुर्गपद व्याख्या), काकल कायस्थ (लघुवृत्ति ढुंढिका दीपिका), जिनसागरसूरि (दीपिका), धनचन्द्र (लघुवृत्ति अवचूरि), धर्मघोष (न्यास), नन्दसुन्दरगणि (लघुवृत्ति अवचूरि), मुनिशेखरसूरि (लघुवृत्ति ढुंढिका), रामचन्द्र (न्यास), विद्याकर (बृहद्वृत्ति दीपिका), विनयसागरगणि (अष्टाध्याय तृतीय पाद वृत्ति) इस व्याकरण के आधार पर अनेक प्रक्रिया ग्रन्थ भी लिखे गए हैं,
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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