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________________ १४४ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ 1 किन्तु शब्दानुशासनकार हेमचन्द्र उक्त तीनों दोषों से मुक्त हैं । उनका व्याकरण सुस्पष्ट एवं आशुबोधक रूप में संस्कृत भाषा के सर्वाधिक शब्दों का अनुशासन उपस्थित करता है । यद्यपि उन्होंने पूर्ववर्ती व्याकरणों से कुछ न कुछ ग्रहण किया है, किन्तु उस स्वीकृति में भी मौलिकता और नवीनता है उन्होंने सूत्र और उदाहरणों को ग्रहण कर लेने पर भी उनके निबन्धनक्रम के वैशिष्ट्य में एक नया ही चमत्कार उत्पन्न किया है। सूत्रों की समता, सूत्रों के भावों को पचाकर नये ढंग के सूत्र एवं अमोघवृत्ति के वाक्यों को ज्यों के त्यों रूप में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ निबद्ध कर भी अपनी मौलिकता का अक्षुण्ण बनाये रचाना हेमचन्द्र जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति का ही कार्य है । प्रारम्भ के ७ अध्यायों में कुल ३५६६ सूत्र हैं । लघुवृत्ति, बृहद्वृत्ति, बृहन्न्यास आदि व्याख्या ग्रन्थ लिखकर अपूर्व वैदुष्य का परिचय दिया है । लिङ्गानुशासन स्वोपज्ञ विवरण, उणादिगण स्वोपज्ञ विवरण, धातुपारायण स्वोपज्ञ विवरण इत्यादि का निर्माण कर शब्दानुशासन के पाँच अंगों को परिपुष्ट किया है । I प्राकृत व्याकरण (सिद्धहेमशब्दानुशासन का आठवाँ अध्याय) आचार्य हेम का यह प्राकृत व्याकरण समस्त उपलब्ध प्राकृत व्याकरणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और व्यवस्थित है । इसके चार पाद हैं । प्रथम पाद में २७१, द्वितीय पाद में २१८, तृतीय पाद में १८२ और चतुर्ध पाद में ३८८ कुल सूत्र १०५९ हैं । चतुर्थ पाद में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची की विशेषताओं का निर्णय है । हेमचन्द्र के सन्मुख पाँच-छः सदियों का भाषात्मक विकास और साहित्य उपस्थित था, जिसका उन्होंने पूर्ण उपयोग किया है । चूलिका पैशाची और अपभ्रंश का उल्लेख वररुचि ने नहीं किया है । चूलिका और अपभ्रंश का अनुशासन हेम का अपना ही है । अपभ्रंश भाषा का नियमन ११९ सूत्रों में स्वतन्त्र रूप से किया है । उदाहरणों में अपभ्रंश के पूरे के पूरे दोहे उद्धृत कर नष्ट होते हुए विशाल साहित्य का उन्होंने संरक्षण किया है । हेमचन्द्र ही सबसे पहले ऐसे वैय्याकरण हैं जिन्होंने अपभ्रंश भाषा
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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