SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डिसेम्बर २०१० १३७ समृद्धि शून्य है । महाराजा भोज रचित भोज व्याकरण के समान गुजरात का भी कोई व्याकरण होना चाहिए । सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में बड़े धुरन्धर दिग्गज विद्वान् थे । जैसे सिंह नामक सांख्यवादी, वीराचार्य, वादी देवसूरि, कुमुदचन्द्र, शारदादेश के उत्साह पण्डित, सागर पण्डित, राम, प्रज्ञाचक्षु महाकवि श्रीपाल, महामति भागवत, देवबोध, भाव बृहस्पति, अभयदेवसूरि, मलधारी हेमचन्द्र, वर्द्धमानसूरि आदि । उन्होंने इस व्याकरण की रचना करने में कौन विद्वान् सक्षम है ? इस दृष्टि से अपनी विद्वत्परिषद् को देखा तो केवल अपूर्व प्रतिभा सम्पन्न हेमचन्द्र ही नजर आए कि यही मेरी कामना को पूर्ण कर सकते हैं। उन्होंने राजसभा में हेमचन्द्र से अनुरोध किया 'हे प्रभो ! आप गुजरात के लिए भी व्याकरण की नवीन रचना कीजिए ।' सिद्धराज जयसिंह की यह अभिलाषा अनुरोध स्वीकार करते हुए हेमचन्द्र ने कहा कि एतत् सम्बन्धी जो साहित्य और जो विद्वान् अपेक्षित हों, उनकी आप व्यवस्था करावें । जयसिंह ने स्वीकार किया । काश्मीर आदि से समस्त प्रकार के व्याकरण और उनके विद्वानों को बुलाकर हेमचन्द्र के सहयोगी के रूप में रखा । हेमचन्द्र ने भी अपनी प्रकर्ष प्रतिभा का उपयोग करते हुए भगवान महावीर की देशना का अमूल्य सूत्र स्याद्वाद समक्ष रखते हुए व्याकरण की रचना प्रारम्भ की । पहला ही सूत्र 'सिद्धिः स्याद्वादाद्' अर्थात् स्याद्वाद और समन्वयवाद का शङ्खनाद कर दिया । इस व्याकरण में राजा और अपना नाम जोड़ते हुए व्याकरण का नाम रखा 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' । सिद्ध अर्थात् सिद्धराज जयसिंह, हेम अर्थात् हेमचन्द्र और शब्दानुशासन अर्थात् व्याकरण । इस व्याकरण का परिचय आगे दिया जाएगा । समस्त विद्वानों द्वारा एक मत से इस व्याकरण के सम्बन्ध में प्रशंसात्मक अभिमत सुनकर सिद्धराज जयसिंह प्रसन्न हुए और कहा जाता है कि जल के प्रवाह में अधिष्ठात्री देवी ने इस व्याकरण को सहज स्वीकार किया इसीलिए यह गुजरात का प्रसिद्ध व्याकरण बन गया । महाराजा कुमारपाल सिद्धराज जयसिंह अपुत्रीय थे इसीलिए किसी विद्वान् ज्योतिषी से
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy