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________________ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ १२८ जयसिंह के इतिहास में श्री हेमचन्द्राचार्य का है । I प्रो. पारीख इन्हें Intellectual Giant कहा है । वे सचमुच लक्षण साहित्य तथा तर्क अर्थात् व्याकरण, साहित्य तथा दर्शन के साधारण आचार्य थे । वे सुवर्णाभ कान्ति के तेजस्वी एवं आकर्षक व्यक्तित्व को धारण करने वाले महापुरुष थे । वे तपोनिष्ठ थे, शास्त्रवेत्ता थे तथा कवि थे । व्यसनों को छुड़ाने में वे प्रभावकारी सुधारक भी थे । उन्होंने जयसिंह और कुमारपाल की सहायता से मद्यनिषेध सफल किया था । उनकी स्तुतियाँ उन्हें सन्त सिद्ध करती हैं, तथा आत्म - निवेदन उन्हें योगी सिद्ध करता है । सर्वज्ञ के अनन्य उपासक थे । I आचार्य हेमचन्द्र के दिव्य जीवन में पद-पद पर हम उनकी विविधता, सर्वदेशीयता, पूर्णता, भविष्यवाणियों में सत्यता और कलिकालसर्वज्ञता देख सकते हैं । उन्होंने अपनी ज्ञान - ज्योत्स्ना से अन्धकार का नाश किया। वे महर्षि, महात्मा, पूर्ण संयमी, उत्कृष्ट, जितेन्द्रिय एवं अखण्ड ब्रह्मचारी थे । वे निर्भय, राजनीतिज्ञ, गुरुभक्त, भक्तवत्सल तथा वादिमानमर्दक थे । वे सर्वधर्मसमभावी, सत्य के उपासक, जैन धर्म के प्रचारक तथा देश के उद्धारक थे । वे सरल थे, उदार थे, निःस्पृह थे । सब कुछ होते हुए भी, प्रो. पीटर्सन के शब्दों में, दुनिया के किसी भी पदार्थ पर उनका तिलमात्र मोह नहीं था । उनके प्रत्येक ग्रन्थ में विद्वत्ता की झलक, ज्ञानज्योति का प्रकाश, राजकार्य में औचित्य, अहिंसा प्रचार में दीर्घदृष्टि, योग में आकर्षण, स्तुतियों में गाम्भीर्य, छन्दों में बल, अलङ्कारों में चमत्कार, भविष्यवाणी में यथार्थता एवं उनके सम्पूर्ण जीवन में कलिकालसर्वज्ञता झलकती है । I हेमचन्द्राचार्य प्रकृति से सन्त थे । सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल की राज्यसभा में रहते हुए भी उन्होंने राज्यकवि का सम्मान ग्रहण नहीं किया । वे राज्यसभा में भी रहे तो आचार्य के रूप में ही । गुजरात का जीवन उन्नत करने के लिये उन्होंने अहिंसा और तत्त्वज्ञान का रहस्य जनसाधारण को समझाया, उनसे आचरण कराया और इसीलिये अन्य स्थानों की अपेक्षा गुजरात में आज भी अहिंसा की जड़ें अधिक मजबूत हैं । गुजरात में अहिंसा की प्रबलता का श्रेय आचार्य हेमचन्द्र को ही है । गुजरात ने ही आचार्य
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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