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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
अनुभववृद्ध कुट्टणी, प्रयोजित मनोविज्ञान Applied Psychologyनो उपयोग करीने कहे छे : 'बधा आवे छे ओक वखत नावीन्य माटे ! वाराङ्गनागृहे आवनारने गृह, पत्नी, गाम बधानी उपरवट जई आवq पडे छे. दरेक वखते कंइ माणस आवां विघ्नोनी उपरवट थइने न आवे !' युवान वाराङ्गना पूछे छे : 'उपाय शो ?' कुट्टणी कहे छे : 'आवनारने, मात्र नावीन्यथी अकवार साहस करीने आवनारने लागवू जोइओ के अने मन-हृदयथी उत्कटतम रूपे चाहनार, प्रेम करनार तो मात्र तुं ज छे. जो अनी तुं प्रतीति करावी शके तो ज तारो प्रेमी बधा सामेनो कायमी विरोध करीने पण तारी साथे रहे.' आम कही काशीराज अने वाराङ्गनानी कथा कहे छे. प्रेम मात्र करवानी, देखाडवानी वात नथी. सामाने खातरी थाय अq करवानी आवडतनी वात छे. अहीं जोई शकाशे के केन्द्रमां अेक विचार छे, सिद्धान्त छे, एने पुष्ट करवा माटे कहेवाती कथा छे तेथी ते निदर्शन-कथा छे. आम सूत्रबद्ध ओवा वार्ताप्रकारने समजवा माटे, पुष्ट करवा माटे जे कथा- दृष्टान्त अपायुं होय, ते कथाने पूरा सन्दर्भ साथे जाणता होइओ त्यारे ज मूळ वात पकडाय छे. आम, दृष्टान्तकथा, निदर्शनकथा भारतीय प्राचीन-मध्यकालीन साहित्यनो व्यापक प्रकार छे, जे तेना ‘हेतु'नी दृष्टिले वर्गीकृत छे. कोई वात, वाद, दृष्टान्तने पुष्ट करवा माटे जे कथा प्रयोजाय ते निदर्शन-कथा. आ बराबर दृष्टिमां होय तो ज 'प्रवल्हिका'र्नु सूत्र पकडाय. ओ विशे कहे छे :
'प्रधानमधिकृत्य यत्र द्वयोर्विवादः' कोई अकने राखीने थतो बे वच्चेनो विवाद ते प्रवल्हिका.
अहीं 'प्रधानम् अधिकृत्य'नो अर्थ क्यारेक भूल-थाप खवडावे. ओ ज रीते 'विवाद' पण. 'प्रधानम्' अटले मुख्य ने मध्यस्थी ओवी कोई व्यक्ति नहीं, परन्तु 'प्रधानम्' अवो कोई विषय, कोई वाद, कोई सिद्धान्त, कोई मान्यता. अने 'विवाद' ओटले मात्र वातचीत के दलील नहीं, परन्तु पोताना मत, विचार, वाद, दलील वगेरेने पुष्ट करतुं निदर्शन. पक्ष ने प्रतिपक्ष बन्ने पोतपोताना मतने पुष्ट करती दृष्टान्तकथा कहे, निदर्शन-कथा कहे. अेक पक्ष ओक कथा कही अक वात स्थापे ते तोडवा बीजो पक्ष बीजी कथा मांडे, जे अना पक्षने दृढ करे ने सामेना पक्षनी दलील- खण्डन करे. आम, आ