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________________ ११४ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ भिन्न प्रकारो अने वर्गो. 'प्रबन्ध' आम, हेमचन्द्राचार्ये जे रीते मूकी आप्युं छे ओ रीते तो ओक मुख्य वर्ग छे, जाति-प्रकार छे. आ ध्यानमां न रह्युं ने कान्हडदे - प्रबन्ध पर ज ध्यान रह्युं अने अपभ्रंशकाळमां तथा पछी कुमारपाळ वगेरे औतिहासिक पात्रोविषयक कथाश्रयी रचनाओ 'प्रबन्ध' नामे / शीर्षके ओळखाई तेथी जे कथानां पात्र अने घटनाओ ऐतिहासिक मनातां होय ओमनी कथाओने जुदी पाडवा 'प्रबन्ध' ने पण रास, आख्यान, पद्यवार्ता जेवुं भिन्न ने स्वतन्त्र स्वरूप मानीने चालवामां आव्युं, चलावी लेवामां आव्युं. ओ भिन्न स्वरूप जरूर छे. रास अने आख्यानथी औतिहासिक मनातां पात्र - घटनानो आधार लेती कथाओ जुदी पडे ज. परन्तु अने माटे 'प्रबन्ध' जेवो जाति माटेनो निश्चित थयेलो पर्याय अपनावतां सेळभेळ थाय. वळी, ‘रणमल-छन्द' ने ओवी आ कुळनी बीजी 'पवाडा' नी रचनाओनुं शुं ? अ पण प्रबन्ध ? 'पवाडा' ना मूळमां 'प्रवाद' छे, 'प्रबन्ध' नहीं. पवाडा दक्षिणमांथी, महाराष्ट्रमांथी आवेल प्रकार अने संज्ञा छे. महाराष्ट्री अपभ्रंश सा अनो सीधो अनुबन्ध छे. मराठा / आक्रमणो अने शासनना गाळामां, दक्षिण गुजरातमां आदिवासी बनीने वसी गयेली महाराष्ट्री - खानदेशनी बोली बोलनार द्वारा तथा मराठीमां कोई विजेताने बिरदावता 'जीतगेला' टुक धरावती रचनाओ 'पवाडा' तरीके गवाती होवाने कारणे गुजरातमां पण आ पर्याय प्रयोजातो थयो . दक्षिण गुजरातनी आदिवासी परम्परामां सीतानो पवाडो छे. सीताजीनो समावेश पौराणिक पात्रमां थाय, औतिहासिक युगना आरम्भ पहेलाना समयगाळामां, इतिहासमां नहीं. छतां ओ रामकथानी कण्ठपरम्परानी आदिवासी रचनामां ज सीतानो पवाडो ओवो प्रयोग थयो छे. जातिना वीरनी बिरदावली गावी, अनी जीतने गानथी वधाववी से बृहत् सेवा आर्यकुळनी जातिनो प्रचलित, परम्परागत प्रकार छे, जेनो कुळमूळगत जातिप्रकार रीते सम्बन्ध 'आख्यायिका' साथे छे, 'कथा' साथे नहीं. परन्तु 'प्रबन्ध' मां से बन्ने छे - प्रबन्धनी जे मूळभूत जातिप्रकारनी ओळख छे त्यां. जेने छन्द, अष्टक, पवाडो वगेरेथी ओळखावी छे ते रचनाओना ज कुळमां बिरदावली, प्रशस्ति Ballad, Heroic poetry नो समावेश थाय छे अने अमांथी ज काळक्रमे Folk - epic, Semi - Literary epic अने प्रशिष्ट मनातां Classical epic विकस्यां छे. हेमचन्द्राचार्ये अध्याय ८/ ५, सूत्र २००मां पहेलो ज समावेश साहजिक क्रमे महाकाव्यनो करी सूत्र २०१
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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