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________________ डिसेम्बर २०१० १११ जूनी कृतिने नवं ज सर्जक रूप आपे छे. प्रत्येक रचना आ दृष्टिले मात्र Old wine in new bottle नथी, ‘वाइन'ने 'विन्टाझ' (आथो) पण जुदां होय छे. आq ज मीमांसानां सूत्रात्मक अने समन्वित मनातां रूपमां छे. बधुं साररूपे सूत्रबद्ध करवामां मम्मटाचार्यनी पोतानी आगवी दृष्टि छे, हेमचन्द्राचार्यनी पण अम आगवी दृष्टि छे. समन्वयकार मात्र सारदोहन, संक्षेप आपतो नथी; पोतानां ज्ञानपरिशीलन, स्वाध्याये अने जे केटलुक नवं लाध्युं छे, ते अना केन्द्रमां छे. हेतु मात्र जे चर्वित छे तेने सूत्रबद्ध करवानो ज नथी, जे केटलुक स्वीकार्य छे, जे केटलुक अस्वीकार्य छे ने केटलुक अकदम नवं ने जू, छे, ते अना केन्द्रमां छे. दृष्टान्तथी कहीओ तो काव्य-प्रयोजनमां मम्मटने यशसे, अर्थकृते, व्यवहारविदे, शिवेतरक्षये दृष्टिमां आवे छे, 'आनन्द' उपरान्त, ज्यारे हेमचन्द्राचार्यने 'अर्थकृते, व्यवहारविदे, शिवेतरक्षये' स्वीकार्य नथी. ओमना मते काव्यनां आनन्द, यश अने प्रीतिपूर्ण उपदेश मुख्य छे. आ तो स्पष्टता माटेनुं ओकमात्र दृष्टान्त छे. आ रीते ज रस, भाव, दोष, गुण, अलङ्कारमा पण मीमांसक तरीकेनी अेक पोतीकी मुद्रा छे. अने विशेष छे ते जे जे साहित्यप्रकारो, जातिओ, स्वरूपो वगेरेमां भरत, कुन्तक, अभिनवगुप्त, आनन्दवर्धन, मम्मट, महिम भट्ट, धनञ्जय द्वारा जे कंइ कहेवायु-चर्चायुं अनुं पश्चिम भारतना मारु-गुर्जर क्षेत्रमा दशमी सदीमां जे रजूआतमां प्रतीत थतुं विशेष रूप छे, तेनुं ज केटलुक नवं जे अन्यनी मीमांसामां नथी ते छे. ओ तो जाणीतुं ज छे के माळवाना गुजरात माटेना हीनभाव-वचनमांथी जन्मेलो 'तोलाङ्गलो, वधूमुखविक्षमाणो, भ्रष्टमुखो' होवानो गुजरात-गुजरातीता पर तिरस्कारनो भाव छे तेनो ज जवाब हेमचन्द्राचार्यनी अनुशासन-त्रयी छे. आम छतां केवळ विद्याने ज वरेला आ शीलवान मीमांसके भोज वगेरेनो छोछ नथी राख्यो. अमनां पण उद्धरणो अमणे चर्त्यां छे. ___ 'काव्यानुशासनम्' अने स्वोपज्ञटीका 'विवेक' हेमचन्द्राचार्यना मुख्य मीमांसाग्रन्थो छे. 'काव्यानुशासनम्'ना कुल ८ अध्यायमां, २०८ सूत्रोमां १. काव्यलक्षण, २. रस, ३. दोष, ४. गुण, ५. अलङ्कार (शब्द), ६. अर्थालङ्कार, ७. नाट्य अने ८. प्रबन्धात्मक काव्यभेदनी स्थापना-चर्चा तेओओ करी. ओ पछी विशेष चर्चा १. अलङ्कारचूडामणि अने २. काव्यानुशासन परनी 'विवेक' नामनी टीकामां करी. अहीं कथासन्दर्भ, खास करीने मध्यकालीन लिखित
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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