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________________ डिसेम्बर २०१० मूळ आधाररूप कृतिपाठ अने तेनी रजूआत Performance माटेना पाठ (text) वच्चेनो केटलोक भेद : आ सन्दर्भे हजु आजे पण अभ्यासीओमां ज कोइ स्पष्टता नथी. कण्ठप्रवाहनां लोकमहाकाव्योनी सुदीर्घ परम्परा अपभ्रंशोत्तरकाळनी मध्य, उत्तर, पश्चिमक्षेत्रनी विविध नवी नवी जन्मेली आर्यभाषाओमां हती, जे 'आल्हा', 'ढोलागान', 'बगडावत - कथा' (अनुं भीलीरूप गुजरांनो अरेलो), 'पाबूजीकथा' (अनुं भीलरूप राठोरवारता), रामकथाकृष्णकथा-पाण्डवकथा - नाथकथा वगेरेना अनेक स्थानिक जाति - बोलीगत रूपान्तरो दशमी सदीथी चौदमी सदी सुधीना ४०० वर्षना सुदीर्घ गाळामां प्रवर्तता हता ने जेनां नहोतां तो लिखित प्रवाहमां कृतिरूप बंधायां के नहोतां तो लिखित प्रवाहमां महाकाव्य दाखल कोइ वृत्तिनी रचनानां उद्यम - साहस ! आथी, नवी जन्मेली आर्य भाषाओ New Indo-Aryan Languages मां लोककाव्य हतां ज नहीं, आवुं ज धारी - मानी - स्वीकारी लेवामां आव्युं. आनुं मूळ कारण ओ के, आ बधुं ज स्पष्ट रूपमां जाणवानी लिखित दस्तावेजी सामग्रीने, अ संस्कृतमां ज मीमांसानां रूपमां लखायेली होवाने कारणे, ओ बधी ज परम्पराओ संस्कृत भाषानी मानी लेवामां आवी. संस्कृतना अभ्यासीओए जे अभ्यास कर्या ते सहज छे के संस्कृतनी ज परम्पराने जाणता होय, मध्यकालीन लिखित परम्परा के लोकसाहित्य तरीके वर्गीकृत थई गयेली कण्ठपरम्पराने जाणता न होय. मल्टी डायमेन्शनल, मल्टी डिसिप्लिनरी अप्रोच ने कम्पेरेटिव स्टडीनुं महत्त्व प्रमाण्या पछी पण, आपणा अभ्यासमां केन्द्रमां तो मात्र सम्बन्धित लिखित ने प्रशिष्ट मनातुं साहित्य ज रह्युं ! ओ पण एकांगी'साहित्य' ओटले शब्दाश्रयी कला. अ कलाने आपणा पूर्वना मीमांसकोअ क्यारेय आवी मर्यादित मानी नथी, ओना दृश्य-श्रव्यरूपने, रजुआतना माध्यमने पण दृष्टिमां राख्यां छे अने 'साहित्य' कलाना शब्दाश्रयना अंगने मूळ ने मुख्य मानवा छतां, ओनी कृतिनी रजुआतमां संगीत, नाटक, नृत्यनो संयोजित विनियोग थाय छे, ते दृष्टिमां राखे छे. 'संगीत' अ पर्याय ज 'म्युझिक' (to muse, आनन्द आपवो) नी अपेक्षाओ विशेष सूक्ष्म ने सूचक छे. न केवळ स्वर, न ओना संयोजननुं स्वरूप, परंतु 'नृत्येन, गीतेन, वाद्येन सहितम्' अ आ पर्यायने बांधे छे. नाटकमां, रसतत्त्व, अनुं मनोवैज्ञानिक पासुं, 'औचित्य’ अना व्यवहार सामग्रीना विनियोग, उपयुक्तताने, 'गुण' ओना समग्र समन्वित - १०९
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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