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________________ डिसेम्बर २०१० १०७ स्वमतमण्डन रजू थयुं छे. आरम्भमां भगवान महावीरनी स्तुति करी सरलसरस शब्दोमां जैनधर्मनुं स्वरूपवर्णन रजू करवामां आवे छे. संसारमां आववानुं कारण छे आस्रव अने मोक्षनुं कारण छे संवर. जैन सिद्धान्तनो आ सार अहीं वर्णित छे. अन्य पद्योमां आ ज वातनो विस्तार प्राप्त थाय छे. अनेकान्त मानवाने कारणे कोइपण विरोध आवतो नथी. द्वात्रिंशिका ओटले बत्रीस श्लोकोनो समूह. आ बन्ने बत्रीसीमां आचार्यनी भाषा-शैली उच्च कवित्व गुणो युक्त छे. दार्शनिकतानी साथोसाथ भक्तहृदयनी लागणीनो तीव्र स्वर प्रगट थयो छे. अन्य दर्शन शाखाओना सिद्धान्तोनुं आलोचनात्मक अवलोकन करीने भक्तिनो सुभग समन्वय सुन्दर रीते अभिव्यक्त कर्यो छे. आ स्तवनो जेटलां दार्शनिक छे तेटलां ज साहित्यिक बनी रह्यां छे. सार : आ स्तोत्र-सरितामां प्लावित बनीने आचार्य हेमचन्द्रसूरिनुं कवि हृदय वेदना, व्यथा, आकांक्षा श्रद्धापूर्वक प्रगट करे छे. प्रार्थना दरेक धर्मओक अभिन्न अंग छे परन्तु अहीं आपणे जोइ शकीओ छीओ के स्तोत्रकार निजलीनता अने कोमळता व्यक्त करीने पोताना उदार हृदयोनो परिचय आपे छे. जेमां कोइ धार्मिक संकीर्णता देखाती नथी. अन्तरनो उमळको, आत्मनिवेदन अने मानसिक शान्ति अहीं प्रगट थती देखाय छे. स्तोत्रमा चाहे वीतराग होय के महादेव होय तेमां समन्वयात्मक दृष्टिकोण जोवा मळे छे. जेटली श्रद्धाथी तेओ महावीरने नमस्कार करे छे ओटली ज श्रद्धा अन्य देवो तरफ दर्शावे छे. आथी ज कही शकाय के आचार्यश्री जेटला दार्शनिक, आलंकारिक, वैयाकरणी छे तेटला ज कोमल हृदयना आर्द्र भक्तकवि छे. C/o. अध्यक्ष, संस्कृतविभाग शामळदास आर्ट्स कॉलेज, भावनगर-१
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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