SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान ५२ छत्रीस सहस ते साधवी, चउद सहस अणगार ॥ जिणन्द० ॥ देव अनेके परिवर्या, भूतल करत विहार ॥१२॥ जिणन्द० ॥ चम्पा गमन उद्देशथी, शुभ भवि कैरव चन्द ॥ जिणन्द० ॥ कोणिक पुर उपगामडे, आव्या वीर मुणिन्द ॥१३॥ जिणन्द० ॥ सूत्र-१० ॥ दूहा ॥ प्रवृत्तिवाहक ते लही, भूपने वात कहन्त । काल्य इहां प्रभु आवस्ये, इंम सघलो विरतन्त ॥१॥ सूत्र - ११ ते निसुंणी धरणीपती, जिन सनमुख विधिवन्त । सात आठ पगला जइ, शक्रस्तव पभणन्त ॥२॥ वन्दन-नमन करी तिहां, प्रीतिदान तस दीध । 'प्रभु आव्या संभलावजो, वेगे' विसर्जन कीध ॥३॥ सूत्र - १२ हर्षभरे रजनी गई, न लहे पूरजन निन्द । ओकाकी प्रभु जब हुंता, तव मुझ कीध निकन्द ॥४॥ मुनिसैन्ये ते परिवर्या, लही आगमन प्रमाण । नाठी निन्द्रा ते भयें, कवि घट-घटना जाणि ॥५॥ जल पंकज दल बोधतो, उग्यो किरणहजार । प्रभु मुख साम्हइयां तणी, शोभा देखण सार ॥६॥ सूत्र - १३ ढाल-४ देवानन्द नरन्दनो रे जन रंजनो रे लाल । ओ देशी । चक्र चलें आकाशमां रे, मन मोहना रे लाल, छत्र चलें आकाश रे, सुची सोहना रे लाल. सिंहासन चामर चलें, मन०, आगल सुर अरदास रे, सुची० ॥१॥ साथे मुनिवर शोभता, मन०, अवधि मनपर्याय रे, सुची० । केता मुनिवर केवली, मन०, वादी केइ मुनिराय रे, सुची० ॥२॥
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy