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________________ सप्टेम्बर २०१० १०७ 'आर्षभी विद्या' शीर्षक लेख एक विलुप्त थई चूकेला जैन सम्प्रदायनी रसप्रद माहिती आपी जाय छे. लेखमां चचित ग्रन्थ 'निगम' नामे जाणीता ग्रन्थसमूहमांनो एक ग्रन्थ छे. निगमसाहित्य अद्यावधि अप्रकाशित छे. निगमोनी हस्तलिखित प्रतो पण विरल छे. कोडाप-खम्भात-माण्डल-जोधपुर जेवा स्थळोना भण्डारोमां विखरायेली आ विरल प्रतोनी प्रतिलिपि अने मुद्रणकार्य कोई संस्थाए करवा जेतुं छे. डॉ. नलिनी बलबीरे जैन परम्परानी समन्वयनी भावनामांथी निष्पादित थता केटलाक Models- व्यावहारिक आदर्शोने तारवी इतिहास अने वर्तमानना सन्दर्भ साथे तेमनी चर्चा करी छे अने समन्वयसाधक आवी भूमिकाओनो मूळ स्रोत अनेकान्तवाद छे एम पण जणाव्युं छे. विलियम बोलीना लेखमां संख्यावाचक तरीके प्रयोजाता संस्कृत शब्दोनी चर्चा छे. 'तरंगलोला'मां प्रयोजायेल देश्य नामो विशे थोमस ओबीनो अभ्यासपूर्ण लेख पण आ अंकमां छे. एमांना थोड़ा शब्दो विशे खुण्टइ : गुजरातीमां 'चूंटवू' छे. कच्छीमां आ शब्द वधु जूना रूपमा हजी सचवाइ रह्यो छे - 'खुंढणुं'. चंगोड़ : गुजरातीमां चंगेरी आ ज अर्थमां छे. पडाली : आ शब्दनो अर्थ लेखके small hut एवो को छे, किन्तु आनो अर्थ 'नानी झुपडी' नथी पण 'छापरी'-'एकढाळियु' छे. गुजरातीमां आजे पण आ ज अर्थमां ‘पडाळी' शब्द प्रचलित छे. ल्हिक्कइ : कच्छीमां 'लिकणुं' आजे पण वपराय छे. जैन शास्त्रोमां भाषाना चार प्रकार बताववामां आव्या छे, तेना विशेनो एक अभ्यासपूर्ण निबंध आ अंकमां छे, जे लेखकना जैन तत्त्वज्ञान अने आचार मार्ग अंगेना ऊंडा अभ्यासनी साक्षी पूरे छे. कच्छ जिल्लामां 'जख्ख बोंतेरा'ना नामे जाणीता जख्ख (यक्ष) देवो विशेनो एक लेख पण रसप्रद छे. यक्ष वस्तुतः परदेशथी आवेला वीरपुरुषो हता, कालक्रमे तेओ देवताना स्वरूपे पूजावा लाग्या-एवी धारणानी पुष्टि करती
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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