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________________ ७८ ४७ जून २०१० ३५ ४२ ३५ ४१ २४ जं फलु होइ गया गिरनारे जगगुरु प्रणमुं वीरजिन जय जय जिनदेवा ज० जय जिणशासण-गयणचन्द जाकी रख्या करे एक भगवंतजी जिनशासनि जे अछइ सभट जिह जिणधम्म न जाणीयइ जीव भणइ सुणि जीभडली रे जेहने उपमा देत है कवि ज्ञानादिक गुणखाणि ज्ञानादिक गुणखाणी राजगृही तिहुयणमणि-चूडामणिहि तुं जिनवदनकमलनी देवी तुम सुणज्यौ हो ब्रह्मचारी ते विण सरग-नरग नहीं त्रिभुवनजिन आणंदा रे त्रिभुवनपति जिनपय नमी थूलिभद्रतणइं विरह किं देव निरंजननें आराहो रे सुभद्रासतीचतुष्पदिका अभयकुमारचौपाई आरती अनन्तहंसगणि-स्वाध्याय गीत सुभट-स्वाध्याय अपभ्रंशदोहा जीभसंज्झाय पुष्पमालाचिंतवणी सुधर्मगणधर-भास सुधर्मगणधरभास धर्मसूरिबारमासा मुनिवरसुरवेली सीलसज्झाय हरियाळी निशालगरj भवस्थितिस्तवन स्थूलिभद्रबारमासा माहापर्मपदसिधआराधनाभास ५६ १३३ ७६ १५ ५२ ४८ ५४ ४९ १५ १०४ ६८ ४२ १५ ७२ ३५
SR No.520552
Book TitleAnusandhan 2010 06 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages159
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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