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________________ अनुसन्धान ५१ पोतानी अश्रद्धा रजू करतां एम लखे छे के डॉ. मधुसूदन ढांकी साथेनी चर्चा दरम्यान तेमने (तेमणे) कर्वा के आ लेखने पहेलां तो बहु महत्त्व अपायुं पण पछी पुण्यविजयजी महाराजे कडं के 'आ तो बनावटी रचना छे' – प्रश्न थाय के शुं संशोधकोनो आ ज धर्म हशे के गुंचवाडा ज ऊभा करवा ?" (ले. जयसुन्दरसूरि, "२०मी सदीनी अलौकिक व्यक्ति' पुस्तकमां) __ पोतानी मान्यताने तेमज तेना समर्थनमां पोते लखेल-लखावेल कल्पित इतिहासने खोटां पुरवार करता लेखने 'आक्रोश' तरीके कोई माणस मूलवे तो ते तो सहेजे समजाय तेवू छे. कारण के बधुं ज छूटी शके, पण मान्यतानी अने मतनी ममत तो कोईक वीरला ज छोडी शके ! परन्तु "शी. एवा टुंकाक्षरी नामवाळा कोई अनुसन्धानकार" आवा शब्दो लखीने तो ए मित्रवर्ये पोतानी मानसिकताना स्तरनो असल परिचय तो अवश्य आपी दीधो छे ! खेर, आपणे स्तरीय संशोधन-विमर्श करीए ते ज आ तबक्के आवश्यक छे. संशोधन एटले सत्य अने तथ्य- प्रकाशन. 'संशोधन एटले परम्पराप्राप्त मत-मन्तव्य-मान्यतानुं खण्डन ज 'एवो अर्थ हरगीझ नथी; न थई शके. संशोधन ए तो, परम्परा द्वारा स्वीकारायेला कोई तथ्यमां क्वचित् गरबड होय, भ्रान्ति प्रवेशी होय, अने तेथी खराने खोटुं अने खोटाने खलं मानवामां आवतुं होय तो तेनुं निरसन-निराकरण करीने ते तथ्यने तेना यथातथ स्वरूपे पुनः प्रस्थापित करती एक प्रक्रिया मात्र छे. आ प्रक्रिया हमेशां प्रमाणोनी-पुरावा अने साबितीओनी अपेक्षा सेवे छे. वगर प्रमाणे कोई वातने स्वीकारी लेवी ए संशोधन-प्रक्रियाने मंजूर नथी होतुं. तो, कोईवार कोई प्रमाणो वडे कोई बाबतनी स्थापना थई गई होय, परन्तु कालान्तरे ते स्थापनाने अन्यथा ठेरवे तेवां नवां-बीजां प्रमाणो अथवा परीक्षणो उपलब्ध थाय, तो पेली-आपोआप खोटी ठरती-स्थापनाने जिद्दपूर्वक वळगी रहेवू, ए वात पण संशोधन प्रक्रियाने माफक आवे तेवी नथी. आथी, हिमवंत थेरावली प्रथमवार ध्यान पर-हाथमां आवी होय अने कांईक नवीन ने विलक्षण मळयाना उत्साहमां तेने प्रमाणभूत गणीने पुण्यविजयजीए कोईक विधान कर्यु होय; परन्तु पाछळथी, तेनां बाह्यान्तर-परीक्षणो द्वारा ते थेरावली, ज्ञानभण्डारोमां उपलब्ध अन्य असंख्य पट्टावलीओनी जेमज, कोईक
SR No.520552
Book TitleAnusandhan 2010 06 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages159
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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