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________________ १६ ११४ वाचक उमास्वातिजीना पद्य विशे' (रूप्यकच्चोलकस्थेन...) महाबोधिविजयजी वाचक उमास्वातिजी- एक वधु पद्य (परिभवसि किमिति लोकम्...) शीलचन्द्रसूरिजी धर्मसार शीलचन्द्रसूरिजी केटलांक प्रसिद्ध पद्योनां समान्तर जूनां स्वरूप शीलचन्द्रसूरिजी एक गाथाना पाठ विशे (न दुक्करं अंबयलुंबितोडणं) शीलचन्द्रसूरिजी तूतीनामा-नां बे जैन चित्रो शीलचन्द्रसूरिजी अपभ्रंश छन्द भ्रूवक्रणक हरिवल्लभ भायाणी झंबडक-गीत हरिवल्लभ भायाणी उद्दामदण्डक छन्दनुं एक प्राकृत उदाहरण हरिवल्लभ भायाणी बे प्राचीन सुभाषितो उत्तरकालीन साहित्यमां' हरिवल्लभ भायाणी मूलशुद्धिवृत्ति-मांनुं एक सुभाषित - वाया सहस्समइया हरिवल्लभ भायाणी एक कहेवतरूप उक्तिनुं पगेरुं -दियहाइं पंच दह वा जोव्वणं हरिवल्लभ भायाणी नीलीराग-जैन हरिवल्लभ भायाणी सातवाहनकशास्त्र हरिवल्लभ भायाणी पुष्पदूषितक, नन्दयन्ती, भद्राभामिनी । हरिवल्लभ भायाणी वाचक उमास्वाति (?)- वधु एक पद्य (शौचमाध्यात्मिकं त्यक्त्वा....) शीलचन्द्रसूरिजी शुं आ गप्पुं गणाय ? शीलचन्द्रसूरिजी २) ५.५४ ३) ५.५४ ४) तिक्खा तुरिअ न माणिआ, किवणाणं धणं णाआणं . ccccccccccccccc ३१ ६३ ६३ अनुसन्धान ५१
SR No.520552
Book TitleAnusandhan 2010 06 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages159
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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