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अनुसन्धान ५० (२)
I
प्रो. भायाणी और अन्य अनेक भाषावैज्ञानिकों ने इण्डो-आर्यन भाषाओं को तीन भागों में बांटा है। Old Indo-Aryan Languages, Middle IndoAryan Languages और Later Indo-Aryan Languages । उनके अनुसार प्राचीन भारोपीय आर्य भाषाओं में मुख्यतः ऋग्वेद एवं अवेस्ता की भाषाएं आती हैं । मध्यकालीन भारोपीय भाषाओं में विभिन्न प्राकृतें और लेटिन, ग्रीक आदि भाषाएं समाहित हैं । भाषा- - वैज्ञानिकों ने मध्यकालीन इन भाषाओं को पुनः तीन भागों में वर्गीकृत किया है १. प्राचीन मध्यकालीन भाषाएं, २. मध्य मध्यकालीन भाषाएं और ३. परवर्ती मध्यकालीन भाषाएं । इनमें प्राचीन मध्यकालीन भाषाओं में अशोक एवं खारवेल के अभिलेख की भाषाएं, पालि (परिष्कृत मागधी), अर्धमागधी, गान्धारी (प्राचीन पैशाची ) एवं मथुरा के प्राचीन अभिलेखों की भाषाएँ समाविष्ट होती हैं। जहां तक मध्य मध्यकालीन भाषाओं का प्रश्न है, उस वर्ग के अन्तर्गत विभिन्न नाटकों में प्रयुक्त प्राकृतें यथा मागधी, शौरसेनी, प्राचीन महाराष्ट्री, परवर्ती साहित्यिक महाराष्ट्री तथा पैशाची आती हैं । ज्ञातव्य है कि नाटकों की शौरसेनी और महाराष्ट्री की अपेक्षा जैन ग्रन्थों की शौरसेनी एवं महाराष्ट्री परस्पर एक दूसरे से और किसी सीमा तक परवर्ती अर्द्धमागधी से प्रभावित है । जब मैं यहाँ परवर्ती अर्धमागधी की बात करता हूँ तो मेरा तात्पर्य क्वचित् शौरसेनी एवं अधिकांशतः महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित अर्धमागधी से है, जो कुछ प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थों यथा आचारांग, इसिभासियाई आदि के प्राचीन पाठों को छोड़कर वर्तमान में उपलब्ध अधिकांश अर्धमागधी आगमों एवं उनकी प्राकृत व्याख्याओं तथा पउमचरियं आदि में उपलब्ध है । यद्यपि अर्धमागधी के कुछ प्राचीन पाठ ११वीं-१२वीं शती तक की हस्तप्रतों तथा भाष्य या चूर्णि के मूल पाठों में सुरक्षित है । संस्कृत मिश्रित प्राकृत में रचित चूर्णियों (७वीं शती) की भाषा में भी कुछ प्राचीन अर्धमागधी का रूप सुरक्षित है। प्रो. के. आर. चन्द्रा ने प्राचीन हस्तप्रतों, चूर्णिपाठों तथा अशोक और खारवेल के अभिलेखों के शब्दरूपों के आधार पर आचारांग के प्रथम अध्ययन का प्राचीन अर्धमागधी स्वरूप स्पष्ट किया है । जहां तक मध्यकालीन परवर्ती भारतीय आर्यभाषाओं का प्रश्न है, वे विभिन्न अपभ्रंशों के रूप में उपलब्ध हैं । इसके पश्चात आधुनिक युग की भाषाऐं आती हैं, यथा-हिन्दी, गुजराती, मराठी, पंजाबी, बंगला, मैथिल आदि ।
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