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________________ ७२ अनुसन्धान ५० (२) Reversal छे, जे प्रमाणे लोकमां जन्मे, शिष्टमां प्रवेशतां अनां पर संस्कार थाय अने निश्चित रूपमां ढळे ने ओ पार्छ लोकमां जाय - Reverse थाय. सामान्य रीते थियरी-थियरी वच्चे भेद अने विरोध लागे, परंतु ओक साची के प्रवर्तमान तो अन्य सर्वथा खोटी अने अमान्य अवं मानवू-धारअभ्यास दृष्टिले खोटा मार्गे दोरनारुं छे. विद्या Lore अने कला, ओक संकुल-संमिश्र घटना छे. कोई ओक निश्चित परिस्थिति नहीं परंतु अनी पण विविधता उद्भव-विकासमां कारणरूप होय छे. आथी कला के ओना अेक प्रकार तरीके साहित्यनी विविध थियरी, अना वादो के मतो, सर्वथा सम्पूर्ण ने स्वीकार्य के सर्वथा अपूर्ण ने अस्वीकार्य न होइ शके. आ घटना, कण्ठ अने लिखितना सम्बन्ध परत्वे, बोली अने भाषा जेवी छे. बोली ज भाषाने घडे. छे, बोलीनां नियमो, अनुं व्याकरण बोलीने भाषारूपे सिद्ध करी आपे. परंतु द्वैतीयीक भूमिकाओ भाषा बोलीओने जन्मावे अने दृढ करे. जन्य होय जनक अने जनक होय ते जन्य बने : आq अहीं शक्य छे. कण्ठ अने लिखित अवा लोकसाहित्य अने साहित्य वच्चेनो सम्बन्ध आ प्रकारनो छे. कण्ठ अने लिखित वच्चेना सम्बन्धनो वस्तुनिष्ठ तटस्थ अभ्यास प्रमाणमां खूब ओछो छे. अने डॉ. भायाणी पछी तो ओ लगभग लुप्त छे. आ बे भिन्न छतां समर्थ अने समकक्ष अवा प्रवाहो-प्रकारोना अभ्यास-संशोधन थाय तो ज 'वश्य'नी नजीक पहोंची शकाय. १, पद्मावती बंग्लोझ, भाविन स्कूल सामे, थलतेज, अमदावाद-३८००५९ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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