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॥ साध्वीजी भावलक्ष्मी धुलबन्ध ॥
सं. मुनिसुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ
जिनशासननी उन्नति करवामां जेटलो सिंहफाळो पू. साधुभगवन्तोनो छे तेटलो ज सिंहफाळो पू. साध्वीजी भगवन्तोनो पण खरो. आ बाबतमां शंकाने कशे ज स्थान नथी. इतिहास पण आवा केटलाय द्रष्टान्तोनो साक्षी छे के अनेक विकट प्रसंगोमांसा. राजिमती, सा. रुद्रसोमा, सा. पोहिणी जेवा घणा साध्वीजी भगवन्तोए शासनने टकाववा/ आगळ धपाववा माटे महेनत करी हती. प्रस्तुत कृतिमां पण कविश्री मुकुन्दे तेवा ज एक साध्वीजी श्रीभावलक्ष्मीजीना जीवनचरित्र पर प्रकाश पाड्यो छे.
साध्वीजीनो परिचय
साध्वीजी भावलक्ष्मीजी सीधपुर (सिद्धपुर 2 ) नामना नगरमा रहेता साल्हओ नामना व्यवहारीना पुत्री छे. तेमनी मातानुं नाम झबकू छे. "वितपन नाम मरगदि सुन्दरी" आ पंक्ति परथी साध्वीजीनुं गृहस्थपणानुं नाम वितपन होय एवुं लागे छे. आवुं नाम कल्पवुं थोडुं कठिण छे, छतां ज्यां सुधी साध्वीजीना जीवनसम्बन्धि अन्य काव्य न मळे त्यां सुधी स्वीकारवुं पडशे. तेमनी दीक्षा कइ उमरे थइ ए अंगे कविए कशुंज लख्यं नथी, परंतु "कालिक कुंयरि नई सरसती ए" आ पद द्वारा कविए भाइ (दीक्षानुं नाम तपासवा योग्य छे) अने बहेन (सा. भावलक्ष्मी) बन्नेनी दीक्षानी ओछा पण सुन्दर शब्दोमां नोंध करी छे. " रतनचूला शिक्षणी' आ पद द्वारा कविए साध्वीजी भगवन्तना गुरुणीना नामनो निर्देश कर्यो होय एम अमो मानीए छीए. साध्वीजी भगवन्तना शीयादि गुणोनी पण कविए सुन्दर प्रशंसा करी छे. आ सिवाय तेमनो विशेष परिचय काव्यमां मळतो नथी
प्रस्तुत कृतिनी रचना वृद्धतपागच्छना रत्नसिंहसूरिना शिष्य उदयधर्म उपाध्यायना शिष्य मुकुन्द कविए करी छे. काव्य ऐतिहासिक छे. कृति रचना कविए धवल नामना काव्यप्रकारमां करी छे. आ काव्यमां वपरायेला रगतहंसा ( रक्तहंसा), मारूयणी धनासी (धन्यासी), धुल धनासी रागो विशेष नोंधपात्र छे.
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