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मार्च २०१०
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सुहव करइ वधामणा रे चतुरविध श्रीसंघ रंग रे । चि० । हरखनन्दन कहइ सेवतां रे चतुर माणस चित चंग रे ॥चि० ५॥
इति गीतम् (१४) गुरु गीतम्
(ढाल-हासलानी) जउ तुहे जास्यउ कामनइ हुं जाइसुं रे वान्दण मन भाइय कि । पूजजी भला । पूजजी कउ हो रुडउ परिवार अति रुडउ हो आचार-विचार कि । पू.भ. । सुणि सुन्दरी पहिली सुण्या पधारया खरतरगच्छराय कि ॥पू. १।। सजकरी सोल श्रृङ्गार तु हूं हिरु हो अति उजल वेश कि ।पू.। ओढ़ नवरंग चूनड़ी कसबीनी हो बांधु पाग विशेष कि ।।पू. २।। तुं करिजे तिहां गूंहली हुँ खरचिसुं हे बोरी भरी दाम कि ।पू.। तुं गीत गावे पूजरा हूँ करिस्युं हे पंचाग प्रणाम कि ॥पू.३।। हूँ तेडीसि घरि आंपणइ पडिलाभे हे सुजतउ आहार कि [पू.। वार-वार थे वान्दिज्यो हूँ सेविसुं हे गुरु चरण उदार कि ॥पू.४।। एह मनोरथ सवि फल्या जब दीठा हे जिनसागरसूरि कि ।पू.। वांद्या भाव वछइ घणा बोलइ बालचन्द सनूरकि ।।पू.५।।
इति मनोरथ गीतम् (१४)
(१५) गुरु गीतम्
(मादल मई सुण्यउ-एहनी ढाल) इण नगरई उ.......
C/o. प्राकृत भारती १३-A, मेन गुरुनानकपथ
मालवीयनगर, जयपुर
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