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________________ अनुसन्धान ५० (२) दया धर्म को मूल हे, पाप मूल अभिमान तुलसी दया न छोडीये, जब लग घटमें प्राण बात बणावे, अकल ओलवे, खावे वीराना माल पर घर कुदे त्रण जणा, वकील वैद दलाल माया से माया मीले, कर कर लंबा हाथ तुलसीदास गरीबनी, कोइ न पूछे बात चन्दन ऊग्यो बागमें, हरखी सब वनराय संगत से म्होंगा कीया, अपणी बास लगाय बांसन ऊग्या बागमें, धडकी सब वनराय कुंलकां खांपण जनमीयो, बल जल भस्म हो जाय अनर्था धन नीपजे, ते सतगुरु मुख कीम जाय के तो भाटा फोडावशी, के मली मशकरा खाय' सुसंगत सुधर्या नही, जीनका बडा अभाग कुसंगत छोडया नही, ज्यां को मोटो भाग अंकुश जिन बीगडया घणा, कुंशिष और कुनार अंकुश माथे धारीओ, ज्यां को मोटो भार अत शीतलाइ कया करे, दुश्मन केरी लाग घसतां घसतां नीकले, चन्दन मांही आग अथ मुशलमानी शेर लिख्यते बंदा बहोत न फूलीये खुदा खमेगां नाही जोर जुलम करजे नहि, मरतलोक के मांही मरतलोक लोक के माहि, तमाशा तुरत बतावे, जो नर चाले अत्यायेते नर खता खावे कहे दीन दरवेश सुणा रे मुख अंधा खुदा खमेगां नांही बहोत मत फूले बंदा (१) मनका चाया करत हे धर धर मनमें दाव हिसाब सबका होवेगा कोन रंक कोन राव १. कां तो माथां फोडावशे, कां मळी मशकरा खाय । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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