________________
मार्च २०१०
१९
खेती विणसे खारसे, सभा विणसे कुड
साधु बीठाडे (बिगाडे ?) लोलपी, ज्यु केसरमें धूल वाणी विणसे वाद रां, चूगलां विणसे गाम देश कुंबुध्या उ जेम, जाय कुपुतां नाम
मनकी' गुरु बगला कीया, दशा उजली देख
कहो रजब केसे तीरे, दोनो की गत अक धन पाया तो कया पाया, धर्म न पाया नहीं वे नर दालीद्री सारीखा, कीसी गणतने मांहे
महेनत कर रे मानवी, महेनत पावे माम
महेनत वीण रीझे नहीं गुरु धणी भगवान साधु सन्त की पारख्या, वाणी वाणी मांह वाणी ज्या की सुध नहीं, वो साधु बीसुध नांह
तरवार तत्व पलटीया, पारस भेट्या आय
लोह पलट कंचन हुवा, तीखा पाणो न जाय तरवार पारस भेटीया, मिटीया सब विकार रजब तिन न मीटीया, वांक मार और धार
जैन धर्म पाया पीछे, वर्तमान कषाय
ये बातां अधकी सुणी, जलमां लानी लाय पक्षा पक्ष माही पच रह्या, जे नर बुध का हीण निरपेक्ष जे मानवी, सवाल बुध प्रवीण
मीठा बोलण नमन गुण, पर उगण ढकलेत
तीनुं भला रे जीवडा, चोथो हातसुं देत माया ममता मोहनी, क्रोध लोभ चण्डाल, चारू तजवो के देवे, जीनको नाम आचार
आंधला उन्दरने थोथा धान, जेवा गुरु तेवा जजमान नाना भडका दीवाली, मोटा भडका होळी चरादासजी चेला मूंड्या, आखर कोली ने कोली
१. बिलाडी।
२. मार धार आकार ।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org