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अनुसन्धान ५० (२)
प्रकीर्ण पत्रोमां अथवा कोई प्रतिना अन्ते रहेती खाली जगामां लघु रचनाओं के पछी कोई उपयोगी माहिती लखी राखवी- ए जूना जमानानी एक लोकप्रिय परिपाटी रही छे. आवी रचनाओमां घणी वार ऐतिहासिक कही शकाय एवी सामग्री मळी आवती होय छे. प्रस्तुत अंकमांनी (१) मेघागणि निर्वाणरास, (२) भास तथा (३) विजयहीरसूरि स्वाध्याय ९ आवी ज ऐतिहासिक कृतिओ छे. पृ. १२६ पर पांचमी पंक्तिमां अपूर्ण पाठ छे तेनी 'नवनिधान [सम नव] वाड़ि' ए रीते पूर्ति करी शकाय एम छे.
भोजनविच्छित्तिः' नामक जूनी गुजराती अगद्यापद्य रचना ए युगना भोजनव्यवहार विशे रसिक अने कौतुकप्रेरक विगतो आपे छे. मोटा भागनी विगतो- अनुसन्धान गुजरातनी वर्तमान भोजनपद्धतिमां जोई शकाय छे, पण केटलीक बाबतोमा खासुं एवं अन्तर पडेलुं जोई शकाय छे. दा.त. भोजनना मध्यमां भात खावानी रीत.
'नारद' विषयक संशोधनलेखमा लेखिकानो संशोधनपरिश्रम ऊडीने आंखे वळगे एवो छे. भारतीय धर्मोना वैचारिक के सांस्कृतिक माळखामां परस्पर साम्य के निकटता धरावती बाबतो अगणित मळी रहे ए सहज छे. केटलाय पौराणिक (अने ऐतिहासिक पण) पात्रोना सम्बन्धमा आवी ज स्थिति जोवा मळे छे. नारद पण एक एवं पौराणिक पात्र छे -- जे एकथी वधु परम्पराना प्राचीन उल्लेख पामे छे. जैन अने हिन्दू प्राचीन ग्रन्थोमां नारद विशे मळी आवता उल्लेखोने एकत्र मूकीने लेखिका ए बन्ने परम्परामां नारद माटेनी मान्यताओ के दृष्टिकोणो समये समये बदलाता रह्या छे एवा निष्कर्ष पर आववानो प्रयास कर्यो छे अने आ मान्यताओ ते ते लेखक-ग्रन्थकारना वैयक्तिक अभिगमने प्रतिबिम्बित करे छे एम पण कहे छे. हवे विविध ग्रन्थकारो द्वारा थता चित्रणमां आq बने ते तो स्वाभाविक छे परन्तु मूलत: नारद कई परम्पराना पुरुष हता ते लेखिका निर्णीत करी शक्या नथी. नारद नामधारक व्यक्तिओ एकथी अधिक होई शके छे अने तेथी नारदना व्यक्तित्वमां विरोधाभासोनुं सम्मिश्रण थयुं होय- आ बिन्दु पण लक्ष्यमां लेवावं जोईए, ए रीते विरोधाभासोनुं समाधान थई शके. आ दृष्टिकोण लेखिकाए विचारणामां लीधो जणातो नथी.
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