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________________ डिसेम्बर-२००९ १३५ एक वखाणइ नारि सरूप आहा सुख नही परभवि दुखकुप । रगत मंश हाडना खंड सोय वखाणी अमृतकंड ॥६२॥(६४) एक तो वेसर जोडइ आहिं अही कणि दुखीओ होइ प्रांहिं । परभवि दुख पामि नीरधार सार पूरष नि करइ असार ॥६३।।(६५) एक मुरिख जोडइ गुण भाड आभवि परभवि तस मुखि खाड । ढाक्या बोल परगट उंचरइ थाइ भाड चोगतिम्हां फरइ ॥६४।।(६६) कुगुरु कुदेव तणा गुण गाय अर्थ सीध कसी नवि थाय । सुगुरु सुदेवनी नंद्या करइ धरम उंथापी चोगति फरइ ॥६५॥(६७) अशा ककव्य हुआ जगि बहुं कवतां पार न पाम्या कहुं । सुगुरु सुदेव तणा गुण गाय आ भवि परभवि सुखीओ थाय ॥६६॥(६८) स्तुति करतां लहइ लागी जोय इंद्र तणी पदवी तो होय । वाधी लहइ तो गणधर थाय तीवर रागि हुओ जिनराय ॥६७।।(६९) लहि लागानुं थानक एह जिनवरना गुण स्तविइ जेह । रावण परि तीर्थंकर थाय करम खपी नि मुगति जाय ॥६८॥(७०) एहेवा जिन स्तुतिना गुण लही मल्लीनाथ मिं स्तवीं सही । पूरव पात्तिक चाल्यां वही सकल सीध नीज मंदिर थई ||६९।।(७१) पूरविं तु न दीठो क्याहि तो जीउं फरतो चोगतिमाहि । कहीइं न वंद्या ताहारा पाय तो सीधगति मुझ क्याहाथी थाय ॥७०॥(७२) ताहरा गुण नवि बोल्यो कदा तो क्यम जाइ भवआपदा । कहीइं न कीधो ताहारो धर्म तो क्यम त्रुटइ आठइ करम ॥७१।।(७३) स्युपनि तुं दीठो जो हंत तो मुझ भवनो आवत अंत । ताहारो धरम अनमोध्यो हंत तो मुझ सुखीओ थाअत जंत ।।७२।।(७४) अनंतकाल मुझ पुरविं गयो ताहारा नाम विनां अही रह्यो । हवइ मुझ सीधां सघलां काम पाम्यो मल्ली जिनेस्वर नाम ॥७३।।(७५) स्तवतां सुखशाता मुझ अंगि जईन धर्म साधु मनरंगि । जस कीरति जगम्हा बोलाय मलीनाथ त्हारो महीमाय ॥७४॥(७६) तु ठाकुर हुं ताहारो दास मि कीधो तुझ गुणनो रास । गुणि भण[इ] सुणइ साभलइ तेनि बारि स्युभ-सुरतरू फलइ ॥७५॥(७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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