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________________ ९६ तक्खणि मेल्हवि खाट कवणु देवु अम्ह कवणु गुरो । अम्ह कवण कुल वाट कवण धम्म इह लोग पुणु ||६|| कइ घरि कइ पोसाल, लियउ सामाइकु पडिक्कमउ । पच्चक्खाणु प्रह कालि जं सक्कउ तं पच्चखउ ||७|| अनुसन्धान-५० घात (घत्ता) अरिरि संभरि अरिरि संभरि दव्व सचित्त विगईय । तहं पाणइय वत्थ कुसुम, तंबोल वाहण सयल । सरीर विलेवणइ बंभचेर, दिसि न्हाण भोयणए । जो जाणई चउद ए पय, नितु नितु करइ प्रमाणु । सो नरु निश्चइ पामिसी, देवहं तणउं विमाणु ॥८॥ सयरह ए सोवु करेवि, धोवति पहिरवि रुवडीअ । पूजहु ए भाउ धरेवि, घर देवालइ देउ जिणु ॥९॥ गंधिहिं ए धूविहि सार, अक्खिहिं पुल्लिहिं दीवहिं । नेवजिए फलिफार, अट्ठ पगारीय पूज इम ॥१०॥ देवहं ए तणउं जु देउ, पूजहु जाइ वि जिण - भवणि । निम्मलु ए अकलु उभेउ, अजरु अमरु अरहंत पहु ||११|| पक्खिहिं ए मुक्खि तुरंतु, राग दोस सवे जो जिणए । रणिहि ए त्रिहु सोहंतु, नाणिहिं दंसणि चारितिहिं ॥ १२ ॥ मिल्हिउ ए चउहिं कसाय, पंच महव्वयभारु धरु । छव्विहिं ए जीवनिकाय, सदय मनु सत्त भय जो चयइ ||१३|| अहिं ए ग ( म ? ) दिहिं मुक्क, बंभगुपिति नव सीचवइ । आलसी ए खण वि न दूकु दस दसविह धम्मु समुद्धर ||१४|| जाइवी ए पोसहसाल, एरिसु दु (सु ? ) हगुरु वांदियइ । माणुस ए ति किरि सियाल जाहन देउ न धम्मगुरु ||१५|| अक्खई ए सुहगुरु धम्मु, सावधाण धम्मिय सुहु । धम्मह मूलुमरंभु जीवदया जं पालियउ || १६॥ झूटउ ए मं बोलेह, आलु दियंतहं आलु सउ । देखि विए कहई भूलेहु, परधणु तृणु जिम मन्नियई ||१७|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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