SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर २००९ नवां प्रकाशनो १. सिरिकुम्मापुत्तचरिअम् : कर्त्ता : आचार्य श्री हेमविमलसूरिशिष्य-मुनिश्रीजिनमाणिक्यविजयजी प्र. भद्रंकर प्रकाशन, अमदावाद, ई.स. २००९ ई.स. १९१९मां पण्डित हरगोविन्ददासे आ ग्रन्थनुं संशोधन करीने संस्कृतछाया साथे जैनविविधसाहित्यशास्त्रमाला अन्तर्गत छपाव्यो हतो. त्यार पछी ई.स. १९३३मां गुजरात कॉलेज द्वारा आ ग्रन्थ पुनः प्रकाशित थयो हतो, जेमां प्रो. के. वी. अभ्यंकरे अनेक हस्तप्रतोना आधारे संशोधित - सम्पादित करेली वाचना, तेमना ज द्वारा थयेला अंग्रेजी अनुवाद साथे मूकवामां आवी हती. आ बन्ने ग्रन्थोना आधारे आ चरित्रनुं पुनः सम्पादन साध्वीजी श्रीचन्दनबाला श्रीजीए कर्तुं छे. ग्रन्थमां उपर नोंधेला संस्कृत- अंग्रेजी अनुवादनी साथे, पण्डित अमृतभाई पटेल द्वारा करवामां आवेला गुजराती-हिंदी अनुवाद पण मूकवामां आव्या छे. परिशिष्ट तरीके शुभवर्धनगणि अने बालचन्द्रसूरि द्वारा रचित कूर्मापुत्रर्षिकथानकोनो पण आ ग्रन्थमां समावेश करवामां आव्यो छे. २. रात्रिभोजन त्याग आवश्यक क्यों ? लेखिका : साध्वी स्थितप्रज्ञाश्रीजी प्रकाशक : पार्श्वनाथ विद्यापीठ, ई.स. २००९ १७७ Jain Education International आ पुस्तकमां रात्रिभोजन शा माटे छोडवुं जोइए तेनुं सुन्दर रीते प्रतिपादन करवामां आवेलुं छे. फक्त धार्मिक रीते ज नहीं, परन्तु विज्ञान - पर्यावरण - आरोग्य वगेरे दृष्टिकोणथी पण रात्रिभोजनत्याग विशे विचार करवामां आव्यो छे- जे आ पुस्तकनी विशेषता छे. लेखिकाए स्वकथनना समर्थनमां आगमो, पुराणो, प्रकरणो वगेरे ग्रन्थोमांथी आपेला अनेक साक्षिपाठोने लीधे प्रतिपादन अधिकृत अने महत्त्वपूर्ण बन्युं छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy