SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ अनुसन्धान ४९ अने मालमुनि एवा नामे बे कविओ नोंधाया छे. आवी स्थितिमां कृतिनी भाषा, शैली जेवां आन्तरिक प्रमाणो द्वारा कर्तानो निर्णय करवो पडे. प्रस्तुत कृतिनी भाषा १७मा सैकानी नहि पण १८मा-१९मा सैकानी जणाय छे, वळी 'मुनि माल' रूपे कर्ता, नाम हाजर छे तेथी लोंकागच्छीय मुनि मालनी ज कृति छे एम मानवामां कशी हरकत नथी. अन्तिम कडीमां 'रसाणी' छे त्यां 'रसाल' प्रासना अनुसारे समजी शकाय छे. जैन ह. लि. भण्डारोमा एक व्यक्तिविषयक सौथी वधारे रचनाओ जो कोईनी मळती होय तो ते नेम-राजुलनी ज हशे. आ अंकमां नेम-राजुलनी २ पद्यरचनाओ तथा एक 'स्थूलिभद्रचोमासुं' एम त्रण रचनाओ छे जे काव्यरसयुक्त छे. नेमगीत, क. ४ - 'पसुआ मि' छे त्यां 'पसुआ मिषि' होवा संभव छे. क. ७मां 'दोकु' छे त्यां 'दोऊ' होवू घटे. 'ऊ' वाचनभूलथी 'कु' तरीके वंचायो छे. 'रामायण'ना जैन रूपान्तरो' ए शीर्षकवाळा अंग्रेजी शोधलेखमां जैनअजैन रामायणनी तुलनात्मक विचारणा सुन्दर रीते थई छे. लेखिका जणावे छे के समग्र रीते जोतां रामायणना जैन रूपान्तरोमां महिलाओना पात्रो वधु सम्मानित रूपे रजू थया छे. वधु वास्तवदर्शी घटनाक्रम अने कर्मसिद्धान्तनुं महत्त्व - ए बे लक्षण पण जैन रामायणोनी विशेषता छे. शीलाङ्काचार्य अने संघदासगणीनी कृतिओ वाल्मीकिकृत रामायणने अनुसरे छे ज्यारे विमलसूरि हेमचन्द्राचार्य अने दिगं. रविषेण, गुणभद्र आदिनी कृतिओमां जैन रूपान्तरण विशेष दृष्टिगोचर थाय छे- एवा निष्कर्ष पण लेखिका आपे छे. 'ध्यानदीपिका' नामक बे रचनाओनी समीक्षा/तुलना करता लेखमां 'ज्ञानार्णव' साथे ते बेयनी सरखामणी करी, ए रचनाओ 'ज्ञानार्णव' ग्रन्थ पर आधारित छे एवो निष्कर्ष अपायो छे. साहित्य अने इतिहास क्षेत्रे निष्पक्ष-निर्भीक समीक्षा द्वारा घणां तथ्यो बहार आवे छे अने स्पष्ट थाय छे तेथी तुलनात्मक परीक्षण हमेशां आवकारपात्र होवू जोइए. अनु० ४८मां प्रकाशित प्राकृतभाषानी दीर्घ रचना 'आणंदादिदस उवासगकहाओ' एक संकलनात्मक कृति छे, परन्तु आगमिक विषय परना प्रभुत्व तथा भाषा सौष्ठवना कारणे ध्यानाकर्षक छे. सम्पादके कर्ता सम्बन्धी पर्याप्त विगतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy