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सप्टेम्बर २००९
१५१ पाया जाता है। ज्ञाताधर्मकथा में 'कच्छुल्लनारद' शब्द का प्रयोग करके कथाकार ने उसके कलहशील तथा अनादरणीय अंशों का पकडकर प्रश्तुत करना तय किया है । उपर्युक्त अन्य विशेषणों में भी
उनके प्रति अनादरणीयता ही ज्यादा झलकती हैं । • ज्ञाताकार की दृष्टि से नारद 'कृष्णचरित्र' से जुड़े हुए हैं ।
'द्रौपदी अपहरण की घटना तथा नारद से इसका सम्बन्ध' यह बात ज्ञाताकार की अपनी खुद की प्रतिभानिर्मिती है । ज्ञाता के पूर्व के दोनों परम्पराओं के किसी भी ग्रन्थ से द्रौपदी-अपहरण का उल्लेख नहीं पाया जाता । द्रौपदी द्वारा अनादर तथा अन्यद्वारा आदरभाव दिखाने में ज्ञाताकार की संभ्रमित अवस्था दिखाई देती है । नारद के व्यक्तित्व के ब्राह्मणत्वसूचक विशेषण खास तरीके से पल्लवित करना तथा द्रौपदी से उसे 'असंयत' कहलवाना आदि बातों से सूचित होता है कि जैन परम्परा में अब साम्प्रदायिक अभिनिवेश . ने प्रवेश किया है। यह कथा आगमप्रविष्ट होने के कारण, बाद के अनेक ग्रन्थकारों ने स्त्रियों द्वारा अनादर, द्रौपदी का अपहरण आदि विविध घटनाओं से नारद को 'मिथक' के स्वरूप में स्वीकारकर विविध प्रकार से कथाएँ प्रस्तुत की। क्योंकि यही कथा अल्पस्वल्प परिवर्तनों के साथ हमें दशवैकालिकटीका२९, कल्पसूत्रटीका", आख्यानकमणिकोश९, प्रवचनसारोद्धार३२, शीलोपदेशमाला-बालावबोध, उपदेशपदटीका४ आदि ग्रन्थों में मिलती है। मतलब जैन माहौल में नारद के इस प्रकार के चित्रण की परम्परा नायाधम्मकहा से शुरू हुई ।
नारद के व्यक्तित्व के कलहप्रियता का यह अंश हम ब्राह्मण परम्परा से भी ढूंढ सकते हैं लेकिन इस अंश का इतनी तीव्रता से तथा स्पष्टता से चित्रण ब्राह्मण परम्परा में नहीं पाया जाता । ब्राह्मण परम्परा में यह भी दिखाया
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