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________________ १४८ अनुसन्धान ४९ नारद के श्वेतद्वीपगमन का उल्लेख है ।१६ भागवतपुराण में नारद ब्रह्मदेव को सृष्ट्युत्पत्तिसम्बन्धी प्रश्न पूछता है और ब्रह्मदेव विस्तार से उसकी जिज्ञासापूर्ति करता है ।१७ इससे यह स्पष्ट होता है कि नारद, चेतनतत्त्व के बारे में जानने के लिए जितना उत्सुक है इतना ही वह जड प्रकृति का स्वरूप जानने के लिए भी तत्पर है। जिज्ञासा, ज्ञानलालसा, प्रश्नोत्तररूप संवाद आदि के जो अंश नारद के स्वभाव में हिन्दु परम्परा में प्राप्त है, वही अंश हमें भगवतीसूत्र में भी मिलते हैं। नारद का श्रमण परम्परा के साथ वैचारिक आदानप्रदान होते रहने का यह तथ्य अन्य जैन साहित्य से भी उजागर होता है। दोनों परम्पराओं ने नारद के 'सर्वसंचारित्व' का उपयोग ज्ञानलालसा की पूर्ति के लिए अच्छी तरह से करवाया है । तत्त्वार्थसूत्र के 'दैवतशास्त्र' में नारद : चौथी शताब्दी के संस्कृत सूत्रबद्ध तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ में शब्दबद्ध दैवतविषयक विवेचन में नारद का स्थान विशेष ही दृढमूल हुआ । देवों के चार निकायों में दूसरे क्रमांक पर व्यन्तरदेव हैं। व्यन्तरदेव तीनों लोकों में भवनों तथा आवासों में बसते हैं । वे स्वेच्छा से या दूसरों की प्रेरणा से भिन्न भिन्न स्थानों पर जाते रहते हैं। उनमें से कुछ मनुष्यों के सम्पर्क में भी रहते हैं । व्यन्तरों के आठ प्रकार है। उसमें चौथे स्थान पर 'गान्धर्व' है । गान्धों के बारह प्रकारों में तुम्बुरव और नारद की गणना की है ।१८ इसका मूलाधार हमें 'पन्नवणा' नाम के अर्धमागधी उपाङ्ग से भी प्राप्त होते हैं ।१९ व्यन्तरदेवों के अवधिज्ञान होने का जिक्र भी तत्त्वार्थसूत्र ने किया है ।२० रामायण, भागवतपुराण तथा अन्य ग्रन्थों में भी नारद का त्रैलोक्यज्ञातृत्व स्पष्ट किया है। रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख है कि नारद ब्रह्मदेव की सभा देखने मेरुपर्वत के शिखरपर गये थे ।२१ भागवतपुराण के प्रथम स्कन्ध में नारद कहते हैं, 'मैं भगवान् की कृपा से वैकुण्ठ तथा तीनों लोकों में बाहर और भीतर बिना रोकटोक विचरण किया करता हूँ ।'२२ तत्त्वार्थसूत्र के चौथे अध्याय में लोकान्तिक देवों को 'देवर्षि' कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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