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________________ सप्टेम्बर २००९ १३३ जातनां छे ! अने ते विधि पत्या पछी आवे छे 'मूंछण' आनो अर्थ प्रतना हांसियामां तेना लेखके ज लखे ल छे : 'मुखवासः' ते सोपारी प्रमुख मुखवास, अने छल्ले पानबीडां आपीने भोजनक्रिया पूरी कराय छे. ए पछी पधारेल महेमानोने पहेरामणीमां भातभातनां वस्त्रो अर्पण थाय छे. केसर-चन्दननां छांटणां करीने तेल-अत्तरनां विलेपन लगावाय छे ए पछी ३२ जातिनां घरेणां (ग्रहणा) उपहाररूपे अपाय, तेनां केटलांक नामो आपेल छे. आ रीते कुटुम्ब- सामीवच्छल (जमण) कर्या बाद छेल्ले विविध जातिनां पुष्पो तथा फूलनी माळाओ संघवा तथा पहेरवा अपाय छे. छेक छेल्ले (विदाय वेळाए) हाथमां फळ आपे छे अने शीख (रूपिया) पण आपे छे. आम भोजनविधि पूरो थाय छे. पूज्य श्रीए बेत्रण वर्ष अगाऊ थोडांक छूटक पानां शीखवा तथा लखवा माटे आपेला. तेमां ३ पानांनी आ प्रतनी झेरोक्स पण हती. आ प्रत उपर कच्छमांडवीना खरतरगच्छना ज्ञानभण्डारनो नम्बर तथा सिक्को छे. तेथी आवं शिक्षण आपनाएं ज्ञान वधारनारुं कार्य करवा माटे आ प्रत आपनार पूज्यश्रीनी अने मांडवीना ज्ञानभण्डारनी हुं हमेशां ऋणी रहीश. भूलचूक थई होय तो सुधारी लेवा विनंति करुं छु. थोडाक अजाण्या शब्दोनी नोंध रमणीरक रमणीय आंडणी बाजोठ (?) काटकी काट नी तितरइ तेटलामां प्रीसणहारी पीरसनारी लघलाघवी लघुलाघवी - चपलता फलहल फळ - मेवो वगेरे प्रीसइ पीरसे छे. सखरा करणा फलजाति पूगे - पहोंचे पूजै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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