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अनुसन्धान ४९
इसी प्रति में मेघमहामुनि का एक ओर निर्वाण भास है, जो की अपूर्ण है । वह निम्न है :
मेघमहामुनि वरतणा सखी गावहे २ नित गुण सार || मेघ० ३।। कुंकुमचन्दन गुहली सखी साथी इहे २ साली पुरावी । मेघ महामुनि सीसनइ सखी आविहे २ भावि वधावी ॥ मेघ० ४॥ काम कुंभ चिन्तामणि मुझ भणई हे २ आव्या आज । मेघमहामुनि नामथी मुझ सरिया हे २ वंछिय काज ॥ मेघ० ५ ॥ दिन दिन दौलत अतिघणी जस नामइ हे २ बहुपरिवार । विमलहंस भगती भणई मेघ नामइए नित जयकार ।। मेघ० ६॥
इति गणि श्री मेघा निर्वाण भास कवि कहता है कि इनके स्मरण से कामकुम्भ, चिन्तामणि आदि प्राप्त हो जाते हैं और विमलहंस भक्ति से मेघ का गुणगान करता है ।
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