________________
सप्टेम्बर २००९
११९
विरहानल झाल हराइ, कंत मिले थइ आलिइ छइं, कविसागर
अइसी उप[मा] बनाइ, तारूणइ मनमथ हुवेनई हौरि जगाइ- (१) (छ दोहा, छ सोरठा, पद्धडिया छन्द, कुंडलीया, गाहा, अड्डिल, कवित सिलोकानंद)
इति श्री विनयसागरमुनिविरचितं[सि] लोकानन्द कवित्वं सम्पूर्ण ।
श्री गौतम रास नमः सिद्धं ।
दूहा ।। गुण गाउ गोतमतणा लबधितणा भंडार । वडा सिख भगवंतरा जांणे जग संसार ॥१॥ प्रतीबोध्या प्रभू कने गणधर गौतमसांम । संजम पाली सिध हूया लिजे नित प्रते नाम ॥२॥
ढालः तिरथनाथ त्रिभोवनधणी प्रभूसासणरा सिरदार । भगति किया भगवंतरी मनवंछितफल-दातारजी समरां पण सिवसुखकारजी, सदा वरते जयजयकारजी, प्रभू पोहता मुक्ति मझार जी, प्रभु थाप्या तीरथ च्यार जी, च्यार संघ में सिरदारजी, गौतम नामे गणधार जी, ज्याने हो जो मारो नमस्कार जी, दिहाडामांहे दस वार जी,
श्री गौतमसांमिमां गुण घणा ॥१॥ सीलमा सोना सारीखा जी, सुंदर रूप सरीर । कनक कसोटी चढावियो भगवतिमे भांष्यो वीर जी, दीठा हरखे हइयारो हीरजी, सामि सायर जेम गंभीर जी, वलि क्षमदमउपसम धीर जी, ज्यारी वांणि मिठी जाणो खिरजी, मीठो खिरसमूद्ररो नीर जी, षटकाय जीवारा पीर जी, वीररा हूया तन वजीर जी, श्री गौतमसांमिमां गुण घणा ॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org