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॥ श्री आचार्यजीना बार मसवडा ॥ (जसवंतजी)
अर्हं नमः
॥ श्री गुरुभ्यो नमः ॥
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सकल सुबोध प्रदायनी, प्रणमुं कवीयण माय, गुण गास्युं गरूआ तणा, सरसति तणइ सुपसाय द्वादश मास श्री गुरू तणा, जे जगमाहि सार, ते गास्युं सुमति करी, होइ ते जय जय [कार ] सोझितनयर सोहामणुं, मरूधर देस मझारि, इंद्रपुरी परि दीपतुं भूमंडलमाहि सार परबत साह वहवारीया, वसि ते तेणि गामि, तास तणइ घरि सूं (सुं) दरी, सोहोदनां एहवइ नामि ॥४॥ चतुर पणुं चितमाहि सदा, सीलि शिरोमणि जाणि (णी) भगति करइ भरथारनी, बोलिइ अमृत वाणि (णी) पुण्य (ण्ये) पेख्यो एकदा, चंद्रह स्वपन मझारि, अनुक्रमइ सुत जनमीउ, इंद्र तणइ अवतारि जस कीरति सहुइ भाइ, फईअर हरख अनंत, सजन सहु हरखि भल्युं, नाम दीउ जसवंत दिन दिन सुत दीपइ घणुं, जेम दीपइ दिन भाण, आस्या पुरइ सजननी, श्रीजसवंत सुजाणु (ण) विनय करी गुरुनो बहु, सुणीउ धर्मविचार, कुमरिं सुध विमासीउ, ए संसार असार घरि आवी जनु (न) नी कहनइ', पहिलो करी जुहार, अनुमति द्यो आइ तुम्हे, अम्हें लेसुं संयमभार वलतु जननी इम भणइ, कुमर प्रति सुवचन, ते भवियण तुम्हे सांभल्यो, आणी निश्चल मन
अनुसन्धान ४९
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