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________________ ५४ अथ सील सज्झाय लिख्यते तुम सुणज्यौ हो ब्रह्मचारी, धरवी रे नववाड सुंगाकि रमणी पसु पंडत (क) तणी रे, वसति निवासो सोइ । मंजारी घर आवतां, मुसा रे, किम पर सुख होइ... नींबु - फलकी वातडी रे, चल्ले दांन (त) थी नीर; तिम नारी गुण गावतां, तन भेदे रे मद घन तीर... अंग उपंग नवि न (?) नीरखीये रे, इम जाणे ब्रह्मचारी; रवि सांमो मुख जोवतां, नैणा रे नही तेज लगाई... अबला आमण फरसतां रे, संभू सुणो विपाक; चीभड फल वासै करी, जिम डूडै रे आटारी वाक... वैद्य निवारण उपरे रै, म म ल्यो सरस आहार; जिम राय अंब - भक्षण करी, जाय पहुचावे यमद्वार... अनुसन्धान ४८ ॥१॥ तुम... ॥२॥ तुम... पांच भीतकै आंतरै रे, नारी सबद सींणगार; सुणतां व्रत थीर ना रहै, घन गरजत रे जिम मोर पिंगार ॥ ५ ॥ तुम... ॥३॥ तुम... पूरब भोग संभालतां रे, थायै अनरथमूल; जिम (न) रक्ष तणी परि जाणिज्यो, रयणा रे पोयो त्रिशूल.. || ६ || तुम... Jain Education International ॥४॥ तुम... For Private & Personal Use Only अतिमात्रा आहारसुं रे, थायै व्र[त ] को भंग; मुनि कुंडरीक तणी परि जाणज्यो, जाय पहुता रे सातमी नर्क ||८|| तुम... ॥७॥ तुम... खंत करी रस सेवीयै रे, कामणी कामविलास; तरवर फल स्वादे करी, जिम पंक्षी डोरे करै विनास ॥ ९ ॥ तुम... इ नव वाडि न भंजीये रे, आणी समरस पूर; सिद्धवधू ही लै वरौ, इम बोलै रे श्री विजै देवसूरि... ॥१०॥ तुम... इति नववाड सिल सज्झाय संपूर्णम् ॥ www.jainelibrary.org
SR No.520548
Book TitleAnusandhan 2009 07 SrNo 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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