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अनुसन्धान ४८
आना रचयिता हीरमुनि छे. आमां भूलचूक होय ते सुधारी लेशो तेवी विनंति करूं छु.
सुमति - कुमति वादगीत ॥ राग - सारंग ॥
चेतन छांडो हो यह रीति, जैसै दोइ नावको चढिवो त्यौ दोई त्रिय की प्रीति
चेतन छांडि हो यह रीति ।।टेका। कुमति सुमति तेरे द्वे बनिता द्वैसो प्रीति बढावै, भए हौ पात वथूरा (?) । तुम चित्त कहैं तो आवै; कबहुंकि तल कबहुंकि ऊपरि, चिहुंगति तोहि फिरावै, कुमति नारि तैरै हो खोटी ले दुरगति पुहचावै चै० ॥१॥ आठ बंध याकै संग डोलै, लीयै पांच सर गासी, तुम तो उनिको हैते करि जांनत, वे दैहैं तोहि फासी; सावधान तुम होत नांहि नां, बुध तमारी नासी, मेरे कह्यो मान ले चेतन, अंत होइगी हांसी. चे० ॥२॥ कुमति कहैं पिय सुमति नारिसुं, प्रीति किडं पा छितेहौ छुटैगो घरबारु अब परिवार विना के हैं भीखमंगै है चे० ॥३॥ सुमति कहैं सुनि नाह बावरे, यह धन धर्म चुरावै, दर्शन ज्ञान चारित्र रत्न शुभै तिनकौं अंक लगावै, तेरो हितु धर्म दश जगमैं सो नहि आवन पावै, मेटै सकल रीति जिन भाषि तो उलटी चाल चलावै. चे० ॥४॥ कुमति कहै सुनि कंत पियारे, यह तोकुं फुसिलावै, यह दूती चंचल शिवपुरकि, ते फंद यहि आवै, हुं सुद्धि अपनै घर बैठी, ताकौं अंक लगावै, तौं सुं कंत पायकै भौंदू क्यों नही नाच नवा(चा)वै. चे० ॥५।।
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