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________________ ४४ अनुसन्धान ४८ उपाध्याय धर्मवर्द्धन विजयहर्ष के शिष्य थे । इनका प्रभाव राजा, महाराजाओं पर भी था और जोधपुर नरेश तथा बीकानेर नरेश इनके भक्त थे । इनके द्वारा रचित श्रेणिक चौपाई, अमरसेन वयरसेन चौपाई, सुरसुन्दरी रास इत्यादि प्रमुख कृतियों के साथ ३०० से अधिक लघु रचनाएं भी प्राप्त होती हैं । इन रचनाओं का संग्रह धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली के नाम से विस्तृत प्रस्तावना के साथ पूर्व में प्रकाशित हो चुका है । जिसके सम्पादक अगरचन्द भंवरलाल नाहटा थे । __ ज्ञानतिलक कहाँ के रहने वाले थे, ज्ञात नहीं । किन्तु, इनका जन्मनाम नाथा था और जिनरत्नसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ने संवत् १७२६ वैशाख वदि ११ चिरकाना में तिलकनन्दी स्थापित की थी । तदनुसार इनका दीक्षा नाम ज्ञानतिलक रखा और विजयहर्ष के पौत्र शिष्य बनाए (दीक्षानन्दी सूची)। सम्भवतः ये राजस्थान प्रदेश के ही होंगे । ज्ञानतिलक रचित साहित्य में १. सिद्धान्त चन्द्रिका वृत्ति (अभी तक अप्रकाशित है ।) बिकानेर के ज्ञान भण्डार के अन्तर्गत महिमा भक्ति ज्ञान भण्डार में इसकी प्रति प्राप्त है । २. विज्ञप्ति पत्र-यह पत्र जिनसुखसूरि को ज्ञानतिलक ने भेजा था । (इसका प्रकाशन सिंघी जैन ग्रन्थमाला के अन्तर्गत विज्ञप्ति लेख संग्रह प्रथम भाग में आचार्य जिनविजयजी ने प्रकाशित किया है। जो पृष्ठ १०७ से ११३ में प्रकाशित है । यह विज्ञप्ति विजयवर्द्धनगणि के नाम से छपी है जो कि ज्ञानतिलक की ही है ।) ३. विज्ञप्ति पत्र-यह अप्रकाशित है और अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है । इसके अलावा कुछ लघु कृतिया भी प्राप्त हैं । प्रस्तुत कृतियाँ इन तीन लघु कृतियों के माध्यम से कवि ने अपना पाण्डित्य भी प्रदर्शित किया है । प्रत्येक कृति में उनका अनूठापन नजर आता है । प्रथम कृति गौड़ीपार्श्वनाथ स्तोत्र शृङ्खलाबद्ध है । साथ ही इसकी भाषा संस्कृत है और देशी रागिनी में इसकी रचना की गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520548
Book TitleAnusandhan 2009 07 SrNo 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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