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________________ जून २००९ अह तिपयाहिणपुव्वं नमंसिउं जिणवरं महावीरं । उवविट्ठा सट्ठाणे कयंजली नर-सुराईया ॥२८०।। भयवं पि साहु-सावयधम्म परिकहइ महुरवाणीए । गिण्हइ य महासयगो सावयधम्मं पहट्ठमणो ॥२८१।। तह परिग्गहपरिमाणं गिण्हइ सो जिणवरिंदपासम्मि । निहि-वुड्ढ-वित्थरेसुं पत्तेयं अट्ठकोडीओ ॥२८२॥ अट्ठ वया दससहस्सा सेसाण चउप्पयाण मह नियमो । दुपए तेरस भज्जा तासिं च परिग्गहे जयणा ॥२८३।। रेवइपमुह-सभज्जासेसम्मि मेहुणविहिं परिहरामि । आहारभूसणाई आणंदगमेण विनेयं ॥२८४।। दोणदुगपमाणाए हिरण्णभरियाए कंसपाईए । कल्लाकल्लिं कप्पइ ववहरिउं तदुवरिं नियमो ॥२८५।। अह अन्नया कयाइं, संचिंतइ रेवई रयणिविरमे । मणवंछिओ न जायइ मह संभोगो वि दइएण ॥२८६।। बारसाहिं सवत्तीहिं वाघाएणं तओ य मह जुत्तं । हणिउं ससवत्तीओ सत्थ-ऽग्गि-विसप्पओगेणं ॥२८७।। तत्तो छ सवत्तीओ विसेण छच्चेव सत्थघाएणं । अइकूरऽज्झवसाया पन्त(व्व)त्ता रेवई हणिउं ॥२८८॥ तासिं दुवालसण्हं हिरन्नकोडी दुवालस वयाई । कोलघरिअए अहिठइ सव्वासिं रेवइ व्व तओ ॥२८९॥ वग्घायविरहिया सा भुंजइ नियभत्तुणा समं भोए । महु-भज्ज-मंसमाईसु गिद्धा अइनिग्घिणा जाता ॥२९०।। अह अन्नया कयाई नयरम्मि अमारिघोसणे विहिए । कोलघरपुरिसेहिं पइदियहं गोणपोयदुगं ॥२९१।। तत्थेवुद्दवा(व्वा)विय आणाविय नियघरम्मि पच्छन्नं । महु-मज्ज-मंसमाई आहारती गमइ कालं ॥२९२।। भत्ता जाणतो वि हु तीए सरूवं जहट्ठियं सव्वं । आणाबलाभिओगो भणिओ न जिणेहिं धम्मम्मि ।।२९३॥ तो नो बलाभिओगा न वारइ न य देइ तीए उवएसं । अज्जोग्गयं मुणंतो उविक्खए तं महापावं ॥२९४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520548
Book TitleAnusandhan 2009 07 SrNo 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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