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________________ ६ दक्खिन्न - सील- सालीणयाइगुणरयणरोहणधरिती । नियपियजणियाणंदा सिवनंदा भारिया तस्स ||२०|| चउरो हिरन्न कोडी निहिम्मि चउरो य वित्थरे तस्स । चउरो कलंतरम्मी सव्वग्गं बारस हवंति ॥२१॥ चत्तारि य तस्स वया गोरूवाणं च अइबलिट्ठाणं एक्वेक्क चउदस गो-सहस्समाणो मुणेयव्वो ||२२|| तत्थ य रिद्धि-समिद्धा सयणा संबंधि - परियणा सुहिणो । वाणियगामस्स बहिं, वट्टइ पुव्वुत्ते दिसी (सि) भागे ||२३|| कोल्लागसंनिवेसो, पत्तेय (तत्थ य ) धणधन्नरमणीओ बहवो । निवसंति सुहसुहेणं आणंद गिहिवइणो ( ? ) ||२४|| [- वीरजिनागमनम् - ] अनुसन्धान ४८ अह अन्नया कयाई वाणियगामाभिहाणनयरस्स । ईसाणदिसीभागे दूइपलासम्म उज्जाणे ॥ २५ ॥ सुललियगइप्पयारो सुसाहु - गयकलह - निवहपरिकलिओ । वीरजिणो संपत्तो विहरंतो गंधहत्थि व्व ॥२६॥ जोयणपमाणखित्ता विहुणिय तण-कट्ठ-कयवराईयं । वाकुमारेहिं बहिं खित्तं वायं विउव्वित्ता ||२७|| गंधोदगं च वुद्धं मेहकुमारारेहिं सुसुगंधं । भूरेणुपसमणट्ठा पविरलधारानिवारण ||२८|| रिउदेवयाहिं विहिया वियसियकुसुमाण पंचवन्नाणं । हिट्ठट्ठियविदाणं वुट्ठी आजाणु सुरहीणं ॥ २९ ॥ मणि-कणय-रययविरइय-पायारतियाभिराममोसरणं । विहियं विमाणि - जोइस - भवणाहिवईहिं देवेहिं ||३०|| मज्झे य बहलपल्लव - सोहिल्लो वंतरेहिं कंकिल्ली । बत्तीहधणुहमाणो निम्मविओ पवरकप्पतरू ॥३१॥ सरयससिसियं सोहइ छत्तत्तयमुन्नयं तियसविहियं । सुरसत्तीए एगत्थ पिंडियं जयपहुजसो व्व ॥ ३२ ॥ वरकंचणमणिमइयं विसालसीहासणं विणम्मवियं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520548
Book TitleAnusandhan 2009 07 SrNo 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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