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अनुसन्धान ४७
अर्थ
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पाह्य
केटलाक कठिन शब्दोना अर्थ शब्द
गाथा क्रमाङ्ग साधारा साधुओना
प्रथम ढाल-दुहा - २ कर्मनिर्जरा कर्मनो नाश समकित देव-गुरु-धर्म प्रत्ये श्रद्धा सुध समवसर्या पधार्या
प्र. ढाल - ३ पाये-पगे पंचाभिगमन जिनभगवान के गुरु पासे जतां
आदरवाना ५ नियमो : सचित द्रव्यनो त्याग, अचित्त द्रव्यनो अत्याग, एकाग्रता, एकशाटिक उत्तरासंग,
प्रभु दर्शन थतां बे हाथ जोडवा. निकाचित कर्म जे कर्म अवश्य भोगवतुं ज पडे. केवली केवलज्ञानी, त्रणे कालना भावने
जोनारा, जाणनारा, तडकीनें गुस्से थईने हुंस
इच्छा-होश भांड्या फेंक्या
बीजी ढाल- ३ भडकाई
भटकाया सोहरा
सुखी जातीसमरण पूर्वभवतुं ज्ञान अठ पहुरी पोसौ श्रावक जीवननी क्रिया (२४ कलाक त्रीजी ढाल दुहा-६
माटे सावध क्रिया त्यागी साधु ।
जेवं जीवन) (आठ प्रहरनो पौषध) डोकरडी
वृद्धा खावसां जमीशु पोषधशालो श्रावकने धर्म आराधना करवान स्थान " " ४
(पोषाल) उपासस
जैन साधुने धर्म आराधना करवानुं
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