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अनुसन्धान ४७
प्राकृतभाषानिबन्धनत्वात् शास्त्रं च-प्रतिविशिष्टार्थशासनात् प्रतीतमेव । प्राकृतशास्त्रे उपयोगो-व्यापारः सो अस्यास्तीति उपयोगी प्राकृतशास्त्रे उपयोगी प्राकृतशास्त्रोपयोगी। तुः पूरणार्थो । जिनेश्वरसूरिणेति कर्तुर्नामनिर्देशो रचित:- कृत इति गाथार्थः ॥२३॥
अजितश्रावकोत्साहादेतच्छन्दोनुशासनम् ।
व्यावृणोन्मुनिचन्द्राख्य-सूरिः श्वेताम्बरप्रभुः । इति श्रीजिनेश्वराचार्यविरचित-छन्दोनुशासनविवरणं समाप्तम् ।
कृतिः श्रीमुनिचन्द्रसूरीणाम् । प्रत्यक्षरगणनया श्लोकमानं २४३ ।
[राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, जेसलमेर ग्रन्थोद्धार योजना फोटोकॉपी नं. २३१, प्लेट ७ पत्र १३] ताडपत्रीय प्रति-लेखनकाल १२वी.
C/o. प्राकृत भारती अकादमी 13-A. मेन मालवीय नगर,
जयपुर ३०१०१७
[नोंध : सम्पादक महोदयने 'छन्दोनुशासन' का मेटर जैसा भेजा
वैसा कम्पोझ हुआ । प्रूफ-वाचन के दौरान काफी क्षतियां नजर में आई, जो बहुतायत लेखनदोष के वजहसे हुई मालूम पडी, और जिनको सुधारने के लिए मूल हस्तप्रति का होना अनिवार्य है, अतः हमने हमारी अल्पमति के अनुसार जितना खयाल आया, वैसा सुधारा है। शुद्धप्राय वाचना की प्रतीक्षा करेंगे।
- शी.]
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