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________________ ७६ अनुसन्धान ४६ उसके कुछ नहीं पूछना चाहिए । कितने ही प्रसंग ऐसे उपस्थित होते जब रोगी के अत्यधिक रुग्ण होने पर वैद्य को साधुओं के उपाश्रय में बुलाकर लाया जाता । उस समय आचार्य स्वयं उठकर वैद्य को रोगी को दिखाते और आवश्यकता होने पर साधुओं को उसके स्नान, शयन, वस्त्र, भोजन तथा दक्षिणा आदि की व्यवस्था करनी पड़ती ।। हरिणेगमेषी द्वारा महावीर के गर्भ का अपहरण जैन सूत्रों में हरिणेगमेषी को इन्द्र की सेना के सेनापति (पायत्ताणीयाहिवइ) के रूप में चित्रित किया है। कहते हैं कि इन्द्र के आदेश से हरिणेगमेषीने अवस्वापिनी विद्या के बल से ब्राह्मणकुण्डग्राम की देवदत्ता (देवानन्दा) नामक ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित महावीर का अपहरण करके उन्हें क्षत्रियकुण्डग्राम की त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में अवतरित कर दिया । गर्भहरण की इस घटना का संक्षिप्त निर्देश आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में है । तथा विशेष वर्णन व्याख्याप्रज्ञप्ति (५.३) में उपलब्ध होता है । . महावीर के गर्भहरण की घटना यद्यपि आचारांग और व्याख्याप्रज्ञप्ति जैसे प्राचीन सूत्र में मिलती है, फिर भी लगता है कि यह घटना पूरी तौरसे लोगों के मनमें आस्था न पैदा कर सकी । स्थानांग (१०) सूत्र में गर्भहरण १. तुलना कीजिए सुश्रुत, सूत्रस्थान २९, अध्याय के साथ । यहाँ वैद्य के पास जाने वाले दूत का दर्शन, सम्भाषण, वेष, चेष्टा, तथा नक्षत्र, वेला, तिथि, निमित्त, शकुन, वायु, वैद्य का देश तथा उसकी शारीरिक, मानसिक और वाचिक चेष्टाओं का प्रतिपादन किया गया है । २. बृहत्कल्पभाष्य १.१९१०-२०१३; व्यवहारभाष्य ५.८९-९०; निशीथसूत्र १०.३६ ३९; भाष्य २९६६-३१२२ ।। ३. कल्पसूत्र २.२६ । विद्या और मन्त्र में अन्तर बताते हुए विद्या को स्त्री-देवता और मन्त्र को हरिणेगमेषी आदि पुरुष-देवताओं द्वारा अधिष्ठित कहा गया है, बृहत्कल्पभाष्य १.१२३५ ।। ४. अंतगडसूत्र (३, पृ. १२) में हरिणेगमेषीका उल्लेख भद्रिलपुर के नागगृहपति की पत्नी सुलसा और कृष्ण की माता देवकी का परस्पर गर्भ-परिवर्तन करनेवाले के रूप में आया है । आगे चलकर कृष्णने हरिणेगमेषीकी उपासना द्वारा अपने लघु भ्राता के रूप में गजसुकुमालको प्राप्त किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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