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________________ ७३ डिसेम्बर २००८ शतसहस्रतेल' (शतसहस्र औषधियों को पकाकर बनाया हुआ तेल) की मालिश की गयी जिससे तेल रोम कूपों में भर गया । परिणाम यह हुआ कि कुष्ठ के कृमि संक्षुब्ध होकर झड़ने लगे। ऊपर से साधु को कम्बल उढ़ा दिया गया जिससे सब कृमि कम्बल पर लग गये । बाद में गोशीर्षचन्दन का लेप करने से रोगी का कोढ़ शान्त हो गया । " सर्पदंष्ट भी इसी प्रकार की घातक बीमारी समझी जाती थी । उन दिनों सर्पों का बहुत उपद्रव था, इसलिए यदि कभी किसी साधु को सर्प काट लेता, उसे हैजा (विसूचिका) हो जाता या वह ज्वर से पीड़ित होता तो उसके लिए साध्वीके मूत्रपान का विधान है । सर्पदंश पर मन्त्र पढ़कर अष्टधातु के बने हुए बाले (कटक) बांध दिये जाते या मुंह में मिट्टी भरकर सर्प के डंक को चूस लिया जाता, या दंश के चारों ओर मिट्टी का लेप कर देते, नहीं तो रोगी को मिट्टी का भक्षण कराया जाता जिससे कि खाली पेट में विष का असर न हो । कभी सर्प से दष्ट स्थानको आगसे दाग देते, या उस स्थान को काट देते, या रोगी को रातभर जगाये रखते । बमी की मिट्टी, लवण और सेचन आदि को भी सर्पदंश में उपयोगी बताया गया है ।" सर्प का जहर शान्त करने के लिए रोगी को सुवर्ण घिसकर भी पिलाया जाता था । ६ भूत आदि द्वारा क्षिप्तचित्त हो जाने के कारण साधुओं की चिकित्सा करने में बड़ी कठिनाई होती थी । ऐसी अवस्था में उन्हें कोमल बन्धनसे बांधकर रक्खा जाता, और कितनी ही बार स्थान के अभाव में उन्हें कुएं १. आवश्यकचूर्णी, पृ. १३३ । २. विनयपिटकके भैषज्यस्कन्ध में यह विधान है । तथा औषधि के रूप में मूत्रग्रहण के लिए देखिए सुश्रुत, सूत्रस्थान ४५.२१७-२२९ । ३. निशीथभाष्य पीठिका १७० । सर्पदंश की चिकित्सा के लिए देखिए महावग्ग ६.२.९, पृ. २२४ ( भिक्षु जगदीश काश्यपका संस्करण) । ४. निशीथभाष्य पीठिका २३०. ७. ६. व्यवहार भाष्य ५.८९ । ८. बृहत्कल्पभाष्य ६.६२६२; तथा चरकसंहिता, शरीरस्थान २, अध्याय ९, पृ. १०८८ ( भास्कर गोविंद घाणेकर का संस्करण) । Jain Education International ५. वही ३९४ । वही २.१२२-२५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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