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डिसेम्बर २००८
कृतिओनो चहेरोमहोरो पण बदलाशे.
साहित्यकोश खण्ड -१नां अधिकरणमां सर्जकनी कृति मुद्रित के अमुद्रित छे तेनो निर्देश करवामां आव्यो छे. कोश प्रकाशित थया पछीना गाळामां अमुद्रित कृति प्रगट थई होय के कोशमां वणनोंधायेली कृति मळी आवी होय तो परिषदे कोशनी ओक अधिकृत नकलमां यथास्थाने ओ फेरफारो नोंधता जई कोशसामग्रीने 'अपडेट' करता रहेवुं जोइओ सम्पादक पोते आवी प्रकाशन - माहिती परिषदने पहोंचाडे अवुं आयोजन पण गोठवी शकाय. आम थाय तो नवी आवृत्ति वेळानुं काम सरळ अने चोकसाईभर्यु बनी शके.
मित्रो, में अहीं नरसिंह- मीरां के अखो - प्रेमानन्द जेवी मध्यकाळनी सिद्धहस्त सर्जकप्रतिभाओनी वात नथी करी अ हुं जाणुं छं. पण मारा वक्तव्यनो मुख्य सूर जे क्षितिजो हजी वणखेडायेली छे ते दिशामां कदम मांडवा अंगेनो छे. जे साहित्यसामग्री धरबायेली पडी छे अने उद्धरवा माटे आपणी प्रतीक्षा छे, अने से पडकार आपणी ज युवापेढीओ झीलवानो छे. ओवो विश्वास अवश्य बेसे छे के जे कांई नवुं प्रगट थई रह्युं छे, प्रगटवा मथी रह्युं छे अने हवे पछी प्रगटवानुं छे अनी संप्राप्ति उपलब्धि नगण्य नहि होय. अथी ज जयन्त कोठारीओ जेने न वीसरवा जेवो वारसो को ओवा आ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना तन्तुथी आपणे विच्छिन्न न थईओ. आपणा प्रजाकीय जीवनना उछेर, घडतर अने विकसनमां ओना थकी थयेला पोषणनुं मूल्य जरीकेय ओछु न आंकीओ.
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[गुजराती साहित्य परिषदना गांधीनगर खाते डिसे. २००७मां योजायेला ४४मा संमेलनमां विवेचन विभागनी बेठकमां अपायेलुं वक्तव्य]
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७, कृष्ण पार्क, गगनविहार सामे, खानपुर, अमदावाद - १
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