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________________ ४८ अनुसन्धान ४६ नहीं रही तब व्यवसायों में भी नहीं रही । इसलिए इन कर्मादानों में से जो व्यवसाय आधुनिक सामाजिक मान्यताओं से मेल नहीं खाते उनको निषिद्ध मानना तर्कसंगत नहीं है । इसी वजह से दिगम्बरीयों ने इस कल्पना को कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया है । ___इन निषिद्ध व्यवसायों का स्वरूप देखकर हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि इनमें से ज्यादातर व्यवसाय प्रत्यक्ष व्यवहार में, पुराने जमाने में भी निषिद्ध नहीं थे, आज भी निषिद्ध नहीं है और भविष्यकाल में तो बिल्कुल निषिद्ध नहीं होंगे। ___मंदिरमार्गी, स्थानकवासी और तेरापंथी जैनियों में दैनन्दिन रूप में पन्द्रह कर्मादानों की गिनती रटने का जो परिपाठ है, उसकी चिकित्सक दृष्टि से समीक्षा होनी चाहिए । इसी उद्देश से यह शोधनिबन्ध लिखा है । m ॐ सन्दर्भ १. भगवती ८.५.१३ (८.२४२) २. उपासकदशासूत्र ५१ ३. आवश्यकसूत्र ७९ (२) श्रावकप्रज्ञप्ति पृ. २८८; श्रावकधर्मविधिप्रकरणम् पृ. ८२ ५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पृ. १२१ अ- १२२ ब भगवतीटीका पृ. ३७२ ब ७-९ भगवती ८.५.१३ (८.२४२) ८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पृ. १२१ अ - १२२ ब ९. उपासकदशा-सप्तम अध्ययन १०. आचारांग २.२.३६ ११. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृ. २८४ १२. सागारधर्मामृत अध्याय ५-श्लोक २३ १३. लाटीसंहिता सर्ग ४- श्लोक १७७-१८३ १४. जैन ज्ञानकोश खंड ४ पृ. ४३७ १५. वसुनन्दि-श्रावकाचार गाथा २९८, गाथा ३०० १६. सागारधर्मामृत अध्याय ३- श्लोक ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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