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________________ ४० (भाडे) पर देने का व्यापार करना । (५) फोडीकम्म (स्फोटककर्म) : यव, चणक, गोधूम, करड आदि से सत्तू, दाली, पिष्ट और करम्ब आदि बनाना । कुआँ, सरोवर आदि के निर्माण के लिए खान खोदना, पत्थर फोडना, आदि व्यवसाय करना । (६) दंतवाणिज्ज ( दन्तवाणिज्य ) : हाथी के दांत, उल्लू के नख, हंस के पंख, हिरन - व्याघ्र आदि का चर्म, शंख, शुक्ति, कस्तुरी आदि का व्यापार करना । अनुसन्धान ४६ (७) लक्खवाणिज्ज ( लाक्षावाणिज्य ) : लाक्षा, धातकी, नीली, मनःशिला, हरिताल, पटवास, टंकण, क्षार आदि का विक्रय करना । (८) रसवाणिज्ज ( रसवाणिज्य ) : मधु, मद्य, मांस, म्रक्षण, दुग्ध, दधि, घृत, तैल आदि का विक्रय करना । (९) केसवाणिज्ज (केशवाणिज्य ) : दास-दासी एवं पशु आदि जीवित प्राणियों के क्रय-विक्रय का धन्धा करना । (१०) विसवाणिज्ज (विषवाणिज्य) : विष का विक्रय करना तथा खड्ग, कुद्दाल, हल आदि शस्त्रों का विक्रय करना । (११) जंतपीलणकम्म ( यन्त्रपीडनकर्म) : ऊखल - मुसल, अरहट्ट आदि का विक्रय करना, इक्षु- सर्षप आदि से तैल निकालकर विक्रय करना तथा जलयन्त्र आदि बनाकर विक्रय करना । (१२) निल्लंछणकम्म (निर्लाञ्छनकर्म ) : बैल आदि के शृंग-पुच्छ आदि तोडना, नासावेध करना, पशुओं की त्वचा पर दाह करना, बैल आदि को नपुंसक बनाना इन सब कर्मों की गिनती यहाँ की है । (१३) दवग्गिदावणया ( दवाग्निदापन ) : भील आदि वनों को दवाग्नि देकर खुशी से रहते हैं । जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए जंगल में आग लगाना, जलाना आदि खरकर्मों का समावेश इसमें किया है। (१४) सरदहतलायसोसणया ( सरद्रहतडागशोषण ) : बीज बोने के लिए तालाब, झील, सरोवर, नदी आदि जलाशयों को सुखाना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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