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अनुसन्धान ४६
एक फटकळ पत्र-अन्तर्गत शब्दयादी
कान्तिभाई बी. शाह
आचार्यश्री शीलचन्द्रसूरिजी महाराजने प्राप्त थयेल केटलांक फूटकळ पत्रो पैकीना एक पत्रमां कोई अभ्यासु जीवे केटलाक अपभ्रंश/जूनी गुजरातीना शब्दो संगृहीत कर्या छे. ए साहित्यना स्वाध्याय-वांचन माटे एमने ए उपयोगी जणाया हशे. एमणे करेली शब्दयादीमा प्रत्येक शब्दनी सामे संस्कृत अर्थो आपेला छे.
पू. महाराजश्रीए संस्कृतार्थवाळी आ शब्दयादीमां वर्तमान गुजरातीमां अर्थ अने जरूरी लागे त्यां टिप्पण आपवानु मने सोंप्यु. शब्दोना चोकसाईभर्या गुजराती अर्थो मेळववा माटे, जयन्त कोठारी सम्पादित 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'मां पत्र-अन्तर्गत यादीमांना शब्दो क्रमशः जोवा मांड्या. त्यारे ख्याल आव्यो के आमांना मोटा भागना शब्दो 'म.गु.श.'मां नोंधायेला हता अने ते बधां स्थानोए 'उक्तिरत्नाकर' ग्रन्थनो आधार लेवायो हतो.
'उक्तिरत्नाकर' ग्रंथ श्रीसाधुसुन्दरगणीए रच्यो छे. कर्ताना सर्जनकाल ई. १६२४-१६२७ना गाळामां एनी रचना थई छे. ई. १९५७मां श्रीजिनविजय मुनिए आ ग्रन्थ- सम्पादन कर्यु छे. आ सम्पादनमां 'उक्तिरत्नाकर' उपरांत बे अज्ञातकर्तृक औक्तिको पण एमां सामेल कराया छे. आ कृतिओमां जूनी गुजराती भाषाना शब्दोनी समज माटे संस्कृत पर्यायो अपायेला छे.
फूटकळ पत्रनी प्रस्तुत शब्दयादीमांना संस्कृत पर्यायो अने 'म.गु.श.'मां नोंधायेला 'उक्तिरत्नाकर'ना संस्कृत पर्यायोनी समानता परथी ए तो निश्चित थयुं के आ शब्दयादी मोटे भागे 'उक्तिरत्नाकर'ना सम्पादन ग्रन्थमांथी करवामां आवी छे.
जयन्त कोठारीए 'उक्तिरत्नाकर' ग्रन्थनो 'म.गु.श.'मां उपयोग करती वखते, गुजराती अर्थ आपवामां, ते ग्रन्थमां अपायेला संस्कृत पर्यायोनो आधार लीधो छे खरो, पण बधां स्थानोमां व्युत्पत्ति तरीके ए संस्कृत पर्यायोनी प्रमाणभूतता स्वीकारी नथी. केटलाक संस्कृत पर्यायो तो मूळ शब्दना कृत्रिम
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