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सप्टेम्बर २००८
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विविध विसंगत उल्लेखों के कारण हम सुनिश्चित रूप से यह नहीं कह सकते हैं कि यह इहलोक में होनेवाला एक समाज है या
अंतरिक्ष में स्थित पितृलोकों में निवास करनेवाली एक योनि है। • तैत्तिरीय ब्राह्मण में देवों के, मनुष्यों के और पितरों के आयुर्मान के
बारे में विवेचन दिया है। उसके आधार से पं. गणेशशास्त्री भिलवडीकरजी इस निष्कर्ष तक पहुंचते हैं कि पितृलोक इस भूतलपर होने की तनिक भी सम्भावना नहीं है। इतना ही नहीं तो पितृलोक हमारे सूर्यमाला में भी होने की संभावना भी नहीं है । अन्य सूर्यमाला में पितृलोक हो सकता है ।१५ पितृलोक का एक निश्चित स्थान निर्दिष्ट न होने के कारण अभ्यासकों में भी मतभिन्नता दिखायी देती है । पितरों का वर्गीकरण अन्यान्य प्रकार से दिया हुआ है । बृहदारण्यक में अयोनिसम्भव पितरों का उल्लेख पाया जाता है ।१६ बर्हिषद, अग्निष्वात्त आदि नामनिर्दिष्ट पितर हैं । इसके अलावा सोमप, हविर्भुज, आज्यप और सुकालि इनका चार वर्णों के पितरों के रूप में निर्देश है । इन चारों के पिता भृगु, अंगिरस, पुलस्त्य और वसिष्ठ बताएँ हैं । अत्रिपुत्र, बर्हिषद दैत्य, दानव, यक्ष, गन्धर्व, सर्प, सुपर्ण, राक्षस और किन्नर इनके पितर है ।१७ तैत्तिरीय संहिता में उत्तम, मध्यम तथा कनिष्ठ ऐसे तीन प्रकार के पितर बताएँ हैं ।१८ तैत्तिरीय ब्राह्मण१९ में तथा वायुपुराण२० में देवपितर और मनुष्यपितर ऐसे दो प्रकार भी निर्दिष्ट किये हैं । विविध ग्रन्थों में आये पितरों के वर्णनों के आधार से विद्वानों ने पितरों के नित्य, नैमित्तिक और मर्त्य ऐसे तीन भेद किये हैं ।२९ इस विवेचन से यह प्रतीत होता है कि पितरों के प्रकारों का विवेचन किसी . एक सूत्र के आधार से नहीं किया है ।
१५. पितर व पितृलोक पृ. २, ३ १६. पितर व पितृलोक पृ. १३ १७. मनुस्मृति अध्याय ३, श्लोक ९६, ९७, ९८ १८. तैत्तिरीय संहिता २.६.१२ १९. तैत्तिरीय ब्राह्मण प्रपाठक ३, अनुवाद १०, पृ. ६५ ते ६८ २०. वायुपुराण ३८.८६
२१. पितर व पितृलोक पृ. १२
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