SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर २००८ ६७ रायराणा मनि चीतवई ए मा० ए किसुं देवनुं काम शास्त्र माहि इम बोलीइ ए मा० त्रिभुवनदीपक नाम ॥२८|| पाष(?छ)लि साल सोहामणु ए मा० कोसीसे सुविसाल जाणे महियलि मंडिउ ए मा० समोसरण चउसाल तिहिं ऊपरि गजसिंहला ए मा० सोहई चिहुं दिसि पोलि तिहिं आगलि हिव चाहिए ए मा० पावडिया रांउलि ॥२९॥ साठि चतुर्मुख सासताए मा० ते छड् देवहगम्म तेहजा मलि एकसट्ठिमु ए मा० धरणागर अतिरम्म राणिगपुरि मंडावीउ ए मा० नित नित उच्छव रंग दानव मानव देवता ए मा० पूज रचइं नितु चंग ॥३०॥ तवगच्छनायक युगपवर मा० सोमसुंदरसूरि सीस विशालमूरति पण्डित तणा ए मा० सेवित पइ निसिदीस इणपरि भगतई वनिउ ए मा० ए श्रीय धरणविहार भणतां गुणतां संपजई ए मा० सासइ सुक्ख संभार सुणिसुंदरि ॥३१॥ इतिश्रीधरणविहारचतुर्मुखस्तवः । समाप्तं । शुभं भवतु ।। सं० लाखाभा० लीलादे पुत्री श्रा० चांपूपठनार्थं ॥ लिखतं पूज्याराध्य पं० समयसुन्दरगणिशिष्य पं० चरणसुन्दरगणि शिष्य हंसविशालगणिना ॥ [नोंध : काव्य के अन्तिम पद्य में आनेवाली 'विशालमूरति पण्डित तणा ए, सेवित पइ निसिदीस' इस पति से यह रचना श्रीविशालमूर्ति के शिष्यने की हो ऐसा प्रतीत होता है । -शी] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy