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सप्टेम्बर २००८
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रायराणा मनि चीतवई ए मा० ए किसुं देवनुं काम शास्त्र माहि इम बोलीइ ए मा० त्रिभुवनदीपक नाम ॥२८|| पाष(?छ)लि साल सोहामणु ए मा० कोसीसे सुविसाल जाणे महियलि मंडिउ ए मा० समोसरण चउसाल तिहिं ऊपरि गजसिंहला ए मा० सोहई चिहुं दिसि पोलि तिहिं आगलि हिव चाहिए ए मा० पावडिया रांउलि ॥२९॥ साठि चतुर्मुख सासताए मा० ते छड् देवहगम्म तेहजा मलि एकसट्ठिमु ए मा० धरणागर अतिरम्म राणिगपुरि मंडावीउ ए मा० नित नित उच्छव रंग दानव मानव देवता ए मा० पूज रचइं नितु चंग ॥३०॥ तवगच्छनायक युगपवर मा० सोमसुंदरसूरि सीस विशालमूरति पण्डित तणा ए मा० सेवित पइ निसिदीस इणपरि भगतई वनिउ ए मा० ए श्रीय धरणविहार भणतां गुणतां संपजई ए मा० सासइ सुक्ख संभार
सुणिसुंदरि ॥३१॥
इतिश्रीधरणविहारचतुर्मुखस्तवः । समाप्तं । शुभं भवतु ।। सं० लाखाभा० लीलादे पुत्री श्रा० चांपूपठनार्थं ॥ लिखतं पूज्याराध्य पं० समयसुन्दरगणिशिष्य पं० चरणसुन्दरगणि शिष्य हंसविशालगणिना ॥
[नोंध : काव्य के अन्तिम पद्य में आनेवाली 'विशालमूरति पण्डित तणा ए, सेवित पइ निसिदीस' इस पति से यह रचना श्रीविशालमूर्ति के शिष्यने की हो ऐसा प्रतीत होता है । -शी]
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