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________________ ५६ अनुसन्धान ४५ दुहो - धन धन श्रीजिन ताहरो, आगम अर्थ अपार, स्यादनुबंधइं सोभतो, सकल पदारथ सार कुमति-कदाग्रह योगथी, जांणे नही तसु मर्म, सुमति सदा सेवनकरी, पामें अवी(वि)चल शर्म .... २ ढाल-२, राग - ललनां० ए देशी । एग-दु-ति-चउ-पंचहा, समकी(कि)त भेद विचार ललनां, भाख्यां ते प्रभु समयमां, भवि जननें उपकार ललनां, धन धन श्रीजिनवरजी १ त्रिविधे जे तुझ वचनथी, सद्दहणा सुभ रीत ललनां, एगविध ते जांणीइं, तुझसुं अडप्रीति प्रीत ललनां, धन धन.... २ द्रव्य-भाव बिहु वली, निश्चयने व्यवहार ललनां, प्रापति तसु उपदेशथी, अहवा निसर्ग विचार ललनां, धन धन.... ३ कारक-रोचक-दीपकें, त्रिविध कहें तुं वीर ललनां, खयोपशम ख्याइक वली, उपशमें अहवा धीर ललनां, धन धन.... ४ सासायण युत जांणीइं, चहुं भेदे सुखदाय ललनां, वेदक युत गुण पंचहा, लहीइं तुझ पसाय ललनां, धन धन.... ५ मोह तणा उपसम भणी, उपशमसमकित हुंत ललनां, पुंज विशुद्धने वेदतां, खयोपशम गुणवंत ललनां, धन धन.... ६ खीण बिहुं पुंजे होई, अंतिम पुंजनो सेश (शेष) ललनां, वेदकसमकित ते वर्दै, ख्याइकपरि शुभलेश ललनां, धन धन.... ७ सप्तक क्षीण थया पछी, ख्याइक समताकंद ललनां, आयुबंधे विचिं भव करी, पामें पूर्णानंद ललनां, धन धन.... ८ समकित वमतां स्वाद जे, सास्वादन तसु नाम ललनां, षट यावलिका तेहर्नु, मांन कहें तुं स्वामि (मी) ललनां, धन धन.... ९ साधिकतेत्रीससागरु, ख्याइक काल प्रमाण ललनां, खयोपसमें छासठिनु, वेदक समय प्रधान ललनां, धन धन.... १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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