SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ अनुसन्धान ४५ अज्ञातकर्तृक श्रीसम्यक्त्वस्तवन ___- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ अज्ञात कवि रचित प्रस्तुत स्तवनामां प्रभुवीरने नमस्कार करीने सम्यक्त्व पामवानी प्रक्रियाने कर्ताओ ओछा पण सुंदर शब्दोमां रजू करी छे. सम्यक्त्व पांमता जीवना त्रण करण-सम्यक्त्वना प्रकार-कयुं सम्यक्त्व केटली वार होय ? कया कया गुणठाणे होय ? अने केटली वार पमाय वगेरे बाबतोने अने अंते सम्यक्त्वना ६७ बोलने बालभोग्य शैलीमां वर्णव्या छे. कर्तानो क्यांक-क्यांक करेलो श ने बदले स नो प्रयोग अने अनुस्वारोनो पण छूटा हाथे करेलो प्रयोग देखाय छे. - प्रत १८९९मां मुमाइ (मुंबइ) बंदरे श्री गोडिपार्श्वनाथना जिनालयमां लखायेल छे. - कर्ता सम्बन्धी कोईपण नोंध अन्य कोई ग्रन्थमां मळी नथी. प्रतनी झेरोक्ष श्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिजी ज्ञानभण्डारमां संग्रहीत श्रीनेमिचंद मेलापचंद झवेरी (सुरत-वाडी) ना उपाश्रयनी छे. प्रतनी स्थितिअक्षर सुंदर छे. त्रण पानानी प्रस्तुत कृति आपवा बदल बन्ने भंडारना व्यवस्थापकोनो आभार. बीजी प्रति न मळता एक प्रति उपरथी आ रचनानुं संपादन थयुं छे. [नोंध : आ रचनानी अन्तिम कडीमां 'पुण्य महोदय' एवो शब्द छे, ते कदाच स्तवनना कर्ताना उल्लेखपरक होय तो सम्भवित छे. पुष्पिकामां "बेहेन राजाबाई पठनार्थ' एम उल्लेख छे, ते प्रख्यात शेठ प्रेमचंद रायचंदनां मातुश्री राजाबाई (राजाबाई टावर वाळां) तो न होय ? स्तवन, जैन दर्शनना तात्त्विक पदार्थ 'सम्यकत्व'नी प्रक्रियानु, सामान्य के अजैन वाचक माटे गहन लागे तेवू वर्णन, जैन शास्त्रीय परिभाषामां, आपे छे. -शी.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy