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________________ अनुसन्धान ४५ मदल ताल-कंसालिया, झल्लरी संख पवित्र, श्री.... ३५ वाजै वीणा-वांसली, वाजै जंगी ढोल मदनभेर वाजै भली, गीतारां रमझोल, सत्तरभेद पूजा कहि, सूत्र तणै अनुसार भाव धरी जै नर करें, तसुं धर जयजयकार, श्री.... ३७ ढाल-आठमी जिनप्रतिमा जिन सारखी रे, मुख श्रीजिनवर भाखी रे, इहां संसय कोइ नहि, श्रीसुधरमास्वामि साखी रे, जिन.... ३८ मूढ कदाग्रह-वाहिया, जिनप्रतिमाजी नवि मांने रे, ते पापे पोतो भरें, परमारथ मूल न जाणै रे, जिन.... ३९ सु(सू)रियाभे किधी सहि, ईम पूजा सतर प्रकारी रे, द्रुपद सुता वली द्रूपदी, श्रीज्ञाताअंग विचारि रे, जिन.... ४० परभावती पूजी वली, प्रतिमा पहनावागरणे रे, श्रीपंचमअंगै कहि, जिनप्रतिमा त्रीजे सरणे रे, जिन.... ४१ आद्रकुमार मत निरमली, प्रतिबूधो प्रतिमा देखी रे, तिण कारण पूजो सदा, जिनप्रतिमां अतिस्य वसेषी रे, जिन.... ४२ द्रव्य अनें भावे करी, मनरंगै पूजा कीजै रे, फलवर्द्धिपुरमंडण सदा, श्रीसंतनाथ समरीजे रे, जिन.... ४३ मेह वसै मोरां मनइ, जिम समी मनइ भरतारो रे, तिम मुझ मन जिनवर वसै, श्रीफलवर्द्धिपुर सिणगारो रे, जिन.... ४४ कलस इम नयन-दिसि-ससिकलावरसै(१६४२), मास आसू सुख भणि फलवर्द्धिमंडण दूरितखंडण, संथूण्यो त्रिभुवनधणी, श्रीरतनहरख मुनिंद वाचक पूरवै सुखसंपदा, श्रीसार साहिब हुआ सुप्रसन, सोलमो जिनवर सदा ॥ इति सप्तदशपूजाप्रकरणगर्भितश्रीसंतनाथस्तवनम् ॥श्री।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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